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- फंदा-फाँसि बतावौं जौ -सूरदास
- फंदा-फांसि बतावौ जौ -सूरदास
- फणधारी
- फणी
- फणीश
- फणेषु नृत्यकारी
- फन-फन-प्रति निरतत नँद-नंदन -सूरदास
- फरसा अस्त्र
- फल (महाभारत संदर्भ)
- फल और सात प्रकार की धारणाओं का वर्णन
- फल फलित होत फल-रूप जानैं -सूरदास
- फल फलित होय फलरूप जाने -नंददास
- फल सहित वर्ण-धर्म का वर्णन
- फलकक्ष
- फलकीवन
- फलोदक
- फल्गु
- फल्गु नदी
- फल्गुतीर्थ
- फल्यो जन भाग्य -कृष्णदास
- फाग की मीर अमीरनि ज्यों -पद्माकर
- फागु की भीर, अभीरिन में गहि -पद्माकर
- फागु रंग करि हरि रस राख्यौ -सूरदास
- फागु रंग करि हरि रस राख्यौ 2 -सूरदास
- फागु रंग करि हरि रस राख्यौ 3 -सूरदास
- फागु रंग करि हरि रस राख्यौ 4 -सूरदास
- फागुन के दिन चार रे, होरी खेल मना रे -मीराँबाई
- फागुन के दिन चार रे -मीराँबाई
- फागुन लाग्यौ सखि जब तें -रसखान
- फाल्गुन
- फाल्गुन (अर्जुन)
- फाल्गुन (बहुविकल्पी)
- फाल्गुनप्रीतिकृत सखा
- फिर तुम क्यों रीझे हो मुझ पर -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- फिरत-फिरत बलहीन भयौ -सूरदास
- फिरत प्रभु पूछत बन-द्रुम-वेली -सूरदास
- फिरत बननि बृंदाबन -सूरदास
- फिरत बननि वृंदावन, वंसीवट -सूरदास
- फिरत लोग जहँ तहँ बितताने -सूरदास
- फिरत लोग जहं तहं वितताने -सूरदास
- फिरि-फिरि नृपति चलावत बात -सूरदास
- फिरि करि नंद न उत्तर दीन्हौ -सूरदास
- फिरि फिरि ऐसोई है करत -सूरदास
- फिरि फिरि कहा बनावत बात -सूरदास
- फिरि फिरि कहा सिखावत मौन -सूरदास
- फिरि ब्रज आइऐ गोपाल -सूरदास
- फिरि ब्रज आइयै गोपाल -सूरदास
- फिरि ब्रज बसहु गोकुलनाथ -सूरदास
- फिरि ब्रज बसौ गोकुलनाथ -सूरदास
- फिरि व्रज बसौ नंदकुमार -सूरदास
- फिसलनी शिला काम्यवन
- फूटि न गईं तुम्हारी चारौ -सूरदास
- फूल
- फूलन की मंडली मनोहर -चतुर्भुजदास
- फूलनि के महल -सूरदास
- फूली फिरति ग्वालि मन मैं री -सूरदास
- फूले कमल कुमुद मुद्रित भए -सूरदास
- फेंट छाँड़ि मेरी देहु श्रीदामा -सूरदास
- फेर पारि देखौ मै धरिहौ -सूरदास
- फेर पारि देखौ मैं धरिहौं -सूरदास
- बंदे बंदगि मत भूल -मीराँबाई
- बंदौं गोपी-जन हृदय जो हरि -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- बंदौं मधुर लाडिलि-लाल -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- बंदौं राधा पद-कमल -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- बंदौं राधा पद-रज पावन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- बंदौं श्रीराधा-चरन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- बंदौं हरि-पद पंकज पावन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- बंशीधर (कृष्ण)
- बंसी
- बंसी बनराज आजु आई रन जीति -सूरदास
- बंसी बैर परी जु हमारै -सूरदास
- बंसी बैर परी जु हमारैं -सूरदास
- बंसी री बन कान्ह बजावत -सूरदास
- बंसी री वन कान्ह बजावत -सूरदास
- बंसी वनराज आजु आई रन जीति -सूरदास
- बंसीवारो श्याम -रसखानि
- बंसीवारो श्यााम -रसखानि
- बक
- बक द्वारा युधिष्ठिर से ब्राह्मण महत्त्व का वर्णन
- बकनख
- बका बिदारि चले ब्रज कौं हरि -सूरदास
- बकारि
- बकासुर
- बकासुर (अंधक का पुत्र)
- बकासुर (बहुविकल्पी)
- बकासुर का वध
- बकासुर संहार
- बगलामुखी
- बच रहे थे दो -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- बचनन हौं अकुलाइ लई री -सूरदास
- बची हुई समस्त कौरव सेना का वध
- बछरा की लै पूँछ कर पकरि -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- बछरा चारन चले गोपाल -सूरदास
- बज-जुवतिनि मन हरयौ कन्हाई -सूरदास
- बज रही गाँव रावल में -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- बजाई बाँसुरी ब्रजराज मोहे ब्रजराज -सूरदास
- बजावत मुरली मीठी तान -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- बजावत मुरली स्याम सुजान -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- बजाऔ मति मुरली -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- बज्र सम मेरौ हियौ कठोर -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- बटाऊ होहिं न काके मीत -सूरदास
- बटाऊ! वा मग तैं मति जइयो -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- बड़ी भई नहिं गई लरिकाई -सूरदास
- बड़ी है राम नाम की ओट -सूरदास
- बड़े और छोटे भाई के पारस्परिक बर्ताव का वर्णन
- बड़े की मानियै जो कानि -सूरदास
- बड़े घर ताली लागी रे, म्हारा मण री उणारथ भागी रे -मीराँबाई
- बड़े घर ताली लागी रे -मीराँबाई
- बड़े बड़े बार जु एँड़िनि परसत -सूरदास
- बड़े भाग्य इहिं मारग आए -सूरदास
- बड़े भाग्य के मोटे हौ -सूरदास
- बड़े भाग्य हैं महर मरि के -सूरदास
- बड़ौ देवता कान्ह पुजायौ -सूरदास
- बड़ौ देवता जानि 3 -सूरदास
- बड़ौ निठुर बिधना यह देख्यौ -सूरदास
- बड़ौ मंत्र कियौ कुँवर कन्हाई -सूरदास
- बडे़ की मानियै जो कानि -सूरदास
- बढ़ि बढि बात लागी करन -सूरदास
- बढ़ी जस ऐसे काज करे तै -सूरदास
- बढ़े भाग्य इहिं मारग आए -सूरदास
- बढि बढि बात लागी करन -सूरदास
- बतिअनि सब कोऊ समुझावै -सूरदास
- बतियां कहति हैं ब्रज-नारि -सूरदास
- बदत बिरंचि बिसेस सुकृत -सूरदास
- बदत विरंचि, विसेस सुकृत ब्रज-बासिन के -सूरदास
- बदरिकाश्रम
- बदरिया बधन बिरहिनी -सूरदास
- बदरिया बधन बिरहिनी आई -सूरदास
- बदरीतीर्थ
- बदरीवृक्ष, नरनारायणाश्रम तथा गंगा का वर्णन
- बदला रे तू जल भरि ले आयो -मीराँबाई
- बदले कौ बदलौ लै जाहु -सूरदास
- बधिर
- बध्यश्व
- बन-बन फिरत चारत धेनु -सूरदास
- बन-बन फिरत चारत धेनु 1 -सूरदास
- बन असोक मैं जनक-सुता कों -सूरदास
- बन कुंजनि चलीं ब्रजनारि -सूरदास
- बन जाओ तुम मेरे सब कुछ -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- बन तें घर हरि पहुँचे आय -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- बन तैं आवत धेनु चराए -सूरदास
- बनक बनी बृषभानु किसोरी -सूरदास
- बनछौली
- बनत नहि राधे मान किये -सूरदास
- बनत नहिं राधे मान किये -सूरदास
- बनत नहीं जमुना को ऐबौ -सूरदास
- बनतन तै आए अति भोर -सूरदास
- बनतन तैं आए अति भोर -सूरदास
- बनहिं धाम सुख रैनि विहाई -सूरदास
- बनहिं बन रस ढरकावत डोलैं -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- बनहिं बन स्याम चरावत गैया -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- बना दो बुद्धिहीन भगवान -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- बना दो विमल-बुद्धि भगवान -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- बनायु
- बनावत रास मंडल प्यारौ -सूरदास
- बनि बनि आवत हैं मेरे लालन -सूरदास
- बनी ब्रज-नारि सोभा भारि -सूरदास
- बनी मोतिनि की माल मनोहर -सूरदास
- बनी राधे काजर की रेख -सूरदास
- बनी रूप रँग राधिका -सूरदास
- बनूँ तुम्हारे शयन-कक्ष का पलँग -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- बनूँ सदा रोगी की औषध -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- बने बिसाल अति लोचन लोल -सूरदास
- बने बिसाल कमल दल नैन -सूरदास
- बन्धन मुक्ति, स्वर्ग, नरक एवं दीर्घायु और अल्पायु प्रदान करने वाले कर्मों का वर्णन
- बन्धनच्छित
- बन्धभेत्ता स्थित
- बन्सी तूं कवन गुमान भरी -मीरां
- बभ्रु
- बभ्रु (काशिराज)
- बभ्रु (बहुविकल्पी)
- बभ्रु (यादव)
- बभ्रु (विश्वामित्र पुत्र)
- बभ्रु का देहावसान एवं बलराम और कृष्ण का परमधामगमन
- बभ्रु वाहन
- बभ्रुमाली
- बभ्रुवाहन
- बरगद
- बरजी मै काहू की नाहिं रहूं -मीराँबाई
- बरजी मैं काहू की नारि रहूँ -मीराँबाई
- बरजी मैं काहूकी नाहिं रहूं -मीरां
- बरजै क्यूँ नी, लाल (स्याम) -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- बरज्यौ नहिं मानत तुम नैकहुँ -सूरदास
- बरन बरन बन फूलि रह्यौ -सूरदास
- बरनौ राधिका लाल -सूरदास
- बरनौ श्री बृषभानु कुमारि -सूरदास
- बरनौं बाल-बेष मुरारि -सूरदास
- बरबस करषौं मुनि-मनहि निज -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- बरष होत न एक पल सम -सूरदास
- बरषा रितु -सूरदास
- बरषा रितु आई -सूरदास
- बरषि-बरषि धन ब्रज-तन हेरत -सूरदास
- बरषि-बरषि हहरे सब बादर -सूरदास
- बरसगाँठि बृषभानु-कुँवरि -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- बरसगाँठि बृषभानु-कुँवरि की -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- बरसत आनँद रस कौ मेह -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- बरसत मेघवर्त धरन पर -सूरदास
- बरसत मेघवर्त्त धरनि पर -सूरदास
- बरसत है घन गिरि के ऊपर -सूरदास
- बरसत हैं घन गिरि के ऊपर -सूरदास
- बरसाना
- बरसे बदरिया सावन की -मीराँबाई
- बरु उन कुबिजा भलौ कियौ -सूरदास
- बरु ए बदरौ बरषन -सूरदास
- बरु ए बदरौ बरषन आए -सूरदास
- बरु मेरी परतिज्ञा जाउ -सूरदास
- बरू मेरी परतिज्ञा जाउ -सूरदास
- बर्बर
- बर्बर (बहुविकल्पी)
- बर्बर जनपद
- बर्बर जाति
- बर्बरीक
- बर्हि
- बर्हिषद
- बर्हिषद (ऋषि)
- बर्हिषद (बहुविकल्पी)
- बल
- बल-मोहन दोउ करत बियारी -सूरदास
- बल-मोहन दोऊ अलसाने -सूरदास
- बल ( कार्त्तिकेय पार्षद)
- बल (अंगिरा पुत्र)
- बल (अंगिरा पुत्र )
- बल (कार्त्तिकेय पार्षद)
- बल (कृष्ण)
- बल (कृष्ण पुत्र)
- बल (दनायु पुत्र)
- बल (परीक्षित पुत्र)
- बल (बहुविकल्पी)
- बल (महाभारत संदर्भ)
- बल (वरुण पुत्र)
- बल (वसुदेव पुत्र)
- बल (विश्वेदेवा)
- बल (सूर्यवंशी परिक्षित पुत्र)
- बल की महत्ता और पाप से छूटने का प्रायश्रित्त
- बल कृष्णचन्द्र
- बल मोहन बन तैं दोउ आए -सूरदास
- बल मोहन बैठे रथ -सूरदास
- बलद
- बलदाऊ
- बलदाऊ कहि स्याम पुकारयौ -सूरदास
- बलदेव
- बलदेव (बहुविकल्पी)
- बलदेव की तीर्थयात्रा
- बलदेव छठ
- बलदेव मथुरा
- बलदेव मन्दिर मथुरा
- बलदेव विद्याभूषण
- बलन्धरा
- बलपुष्टिकरी
- बलबन्धु
- बलभद्र
- बलराम
- बलराम का आगमन और सम्मान
- बलराम का नारद से कौरवों के विनाश का समाचार सुनना
- बलराम का पांडव शिविर में आगमन और तीर्थयात्रा के लिए प्रस्थान
- बलराम का सप्त सारस्वत तीर्थ में प्रवेश
- बलराम की पांडवों के प्रति सहानुभूति
- बलराम की सलाह से सबका कुरुक्षेत्र के समन्तपंचक तीर्थ में जाना
- बलराम के नाम
- बलवर्द्धन
- बलवर्धन
- बलवान
- बलवान् (महाभारत संदर्भ)
- बलवाहक
- बलाक
- बलाका
- बलाकाश्व
- बलाकी
- बलाक्ष
- बलानीक
- बलानीक (द्रुपद पुत्र)
- बलानीक (बहुविकल्पी)
- बलासुर
- बलाहक
- बलाहक (जयद्रथ भाई)
- बलाहक (बहुविकल्पी)
- बलाहक (सर्प)
- बलि
- बलि-बलि जाउँ मधुर सुर गावहु -सूरदास
- बलि (ऋषि)
- बलि (पुरुवंशी राजा)
- बलि (बहुविकल्पी)
- बलि और इन्द्र का संवाद
- बलि को त्यागकर आयी हुई लक्ष्मी की इन्द्र के द्वारा प्रतिष्ठा
- बलि गइ बाल-रूप मुरारि -सूरदास
- बलि जाऊँ गैया दुहि दीजै -सूरदास
- बलि द्वारा इन्द्र को फटकारना
- बलि बलि चरित गोकुलराइ -सूरदास
- बलि बलि जाऊँ सुभग कपोलनि -सूरदास
- बलि बलि मोहिनि मूरति की -सूरदास
- बलिवाक
- बलिहारी या राति की 5 -सूरदास
- बली
- बली (कृष्ण)
- बली (बहुविकल्पी)
- बली केशिहा
- बलीवाक्पटुश्री
- बलीश
- बलोत्कटा
- बल्देव मथुरा
- बल्लभ राजकुमार छबीले हो ललना -सूरदास
- बल्लभाचार्य
- बल्लव
- बल्लव (जनपद)
- बल्लव (बहुविकल्पी)
- बल्वलांगप्रभाखण्डकारी
- बसंत ऋतु
- बसंत पंचमी
- बसन हरे सब कदम चढ़ाए -सूरदास
- बसा रहे मन-मधुप निरन्तर -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- बसुद्यौ कुल ब्यौहार बिचारि -सूरदास
- बसे री नैननि मै पट इंदु -सूरदास
- बसे री नैननि मैं पट इंदु -सूरदास
- बसो मेरे नैनन में नँदलाल -मीराँबाई
- बसो मोरे नैनन में नंदलाल -मीराँबाई
- बसौ मेरे नैननि मैं यह जोरी -सूरदास
- बसौंती गाँव
- बसौंती गांव
- बस्तिक
- बहन
- बहनोई
- बहाशी
- बहिन
- बहिर्गिरि
- बहु जुग बहुत जोनि फिरि हारौ -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- बहु दिन ऐसोई हो री -सूरदास
- बहु दिन ऐसौइ हौ री -सूरदास
- बहुगुण
- बहुत कृपा इहिं करी गुसाई -सूरदास
- बहुत जुरे ब्रजबासी लोग -सूरदास
- बहुत दिन गए ऊधौ -सूरदास
- बहुत दिन जीवौ -सूरदास
- बहुत दिन जीवौ पपिहा प्यारौ -सूरदास
- बहुत दिन बीते हरि बिनु देखैं -सूरदास
- बहुत दुख पैयत है इहिं बात -सूरदास
- बहुत दुख पैयत हैं इहिं बात -सूरदास
- बहुत दूर तुम, बहुत पास तुम -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- बहुत नारि सुहाग-सुंदरि -सूरदास
- बहुत फिरी तुम काज कन्हाई -सूरदास
- बहुत भाँति नैना समुझाए -सूरदास
- बहुतै दुख हरि सोइ गयौ री -सूरदास
- बहुदामा
- बहुपुत्रिका
- बहुमूलक
- बहुमूलक नाग