बरसत मेघवर्त्त धरनि पर -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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बरसत मेघवर्त्त धरनि पर।
मूसलधार सलिल बरषतु है, बूँद न आवत भू पर।।
चपला चमकि-चमकि चकचौंधति, करति सब्द-आघात।
अंधाधुंधु पवनबर्त्तक घन, करत फिरत उतपात।।
निसि सम गगन भयौ आच्छादित, बरषि-बरषि झर इंद।
ब्रजबासी सुख चैन करत सब, धरे गिरिवर गोबिंद।।
मेघ बरषि जल सबै बढ़ाने, दिवि-गुन गए सिराइ।
वैसोइ गिरि, वैसे ब्रजबासी, दूनौ हरष बढ़ाइ।।
सात दिवस जल बरषि निसा दिन, ब्रज-घर-घर आनंद।
सूरदास ब्रज राखि लियौ धरि, गिरिवर कर नँद नंद।।877।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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