बसे री नैननि मै पट इंदु -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग वैराटी


बसे री नैननि मै पट इंदु।
नंदनंदन वृषभानुनंदिनी सखी सहित सोभित जग बंद।।
द्वादस ही पतंग, ससि सौ बिस, षट फनि, चौबीस चतुरँग छंद।
द्वादस बिंब, सौ बानबे बज्रकन, षट कमलनि मुसक्यात जु मंद।।
द्वादस ही मृनाल, कदली खँभ, लखि द्वादस मराल आनंद।
द्वादस ही सायक, द्वादस धनु, खग व्यालीस माधुरी फंद।।
चौबिस चतुष्पदनि सोभा मनु, चलत चुवत करभा मकरंद।
पीत गौर दामिनि बिच राजत, अनुपम छबि श्री गोकुल चंद।।
साठि जलज अरु द्वादस सरवर, अगहि अंग सरस रस कंद।
'सूर' स्याम पर तन मन वारति ललिता, देखि भयो आनंद।।2171।।

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