बलराम का नारद से कौरवों के विनाश का समाचार सुनना

महाभारत शल्य पर्व में गदा पर्व के अंतर्गत 54वें अध्याय में बलराम का नारद से कौरवों के विनाश का समाचार सुनने का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है[1]

नारद और बलराम का संवाद

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! इस प्रकार वे लोग वहीं ठहरे हुए थे, तब तक देवर्षि भगवान नारद भी उनके पास उसी स्थान पर आ पहुँचे, जहाँ बलराम जी विराजमान थे। राजन! महातपस्वी नारद जटामण्डल से मण्डित हो सुनहरा चीर धारण किये हुए थे। उन्होंने कमण्डलु, सोने का दण्ड तथा सुखदायक शब्द करने वाली कच्छपी नामक मनोरम वीणा भी ले रखी थी। वे नृत्य-गीत में कुशल, देवताओं तथा ब्राह्मणों से सम्मानित, कलह कराने वाले तथा सदैव कलह के प्रेमी हैं।[1]

वे उस स्थान पर गये, जहाँ तेजस्वी बलराम बैठै हुए थे। उन्होंने उठकर नियम और व्रत का पालन करने वाले देवर्षि का भली-भाँति पूजन करके उनसे कौरवों का समाचार पूछा। राजन! तब सम्पूर्ण धर्मो के ज्ञाता नारद जी ने उनसे यह सारा वृत्तान्त यथार्थ रूप से बता दिया कि कुरुकुल का अत्यन्त संहार हो गया है। तब रोहिणीनन्दन बलराम ने दीनवाणी में नारद जी से पूछा- ‘तपोधन! जो राजा लोग वहाँ उपस्थित हुए थे, उन सब क्षत्रियों की क्या अवस्था हुई है, यह सब तो मैंने पहले ही सुन लिया था। इस समय कुछ विशेष और विस्तृत समाचार जानने के लिये मेरे मन में अत्यन्त अत्सुकता हुई है’।[2]

नारद द्वारा कौरवों के विनाश का समाचार सुनना

नारद जी ने कहा- रोहिणीनन्दन! भीष्म जी तो पहले ही मारे गये। फिर सिंधुराज जयद्रथ, द्रोण, वैकर्तन कर्ण तथा उसके महारथी पुत्र भी मारे गये हैं। भूरिश्रवा तथा पराक्रमी मद्रराज शल्य भी मार डाले गये। ये तथा और भी बहुत से महाबली राजा और राजकुमार जो युद्ध से पीछे हटने वाले नही थे, कुरुराज दुर्योधन की विजय के लिये अपने प्यारे प्राणों का परित्याग करके स्वर्गलोक में चले गये हैं। महाबाहु माधव! जो वहाँ नही मारे गये हैं, उनके नाम भी मुझसे सुन लो। दुर्योधन की सेना में कृपाचार्य, कृतवर्मा और पराक्रमी द्रोणपुत्र अश्वत्थामा- ये शत्रुदल का मर्दन करने वाले तीन ही वीर शेष रह गये हैं। परंतु बलराम जी! जब शल्य मारे गये, तब ये तीनों भी भय के मारे सम्पूर्ण दिशाओं में पलायन कर गये थे। शल्य के मारे जाने और कृप आदि के भाग जाने पर दुर्योधन बहुत दुखी हुआ और भागकर द्वैपायन सरोवर में जा छिपा। जब दुर्योधन जल को स्तम्भित करके उसके भीतर सो रहा था, उस समय पाण्डव लोग भगवान श्रीकृष्ण के साथ वहाँ आ पहुँचे और अपनी कठोर बातों से उसे कष्ट पहुँचाने लगे।

बलराम! जब सब ओर से कड़वी बातों द्वारा उसे व्यथित किया जाने लगा, तब वह बलवान वीर विशाल गदा हाथ में लेकर सरोवर से उठ खड़ा हुआ। इस समय वह भीम के साथ युद्ध करने के लिये उनके पास जा पहुँचा है। राम! आज उन दोनों में बड़ा भयंकर युद्ध होगा, माधव! यदि तुम्हारे मन में भी उसे देखने का कौतूहल हो तो शीघ्र जाओ। यदि ठीक समझो तो अपने दोनों शिष्यों का वह महाभयंकर युद्ध अपनी आंखों से देख लो।[2]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत शल्य पर्व अध्याय 54 श्लोक 1-20
  2. 2.0 2.1 महाभारत शल्य पर्व अध्याय 54 श्लोक 21-38

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