फिरि ब्रज आइयै गोपाल ।
नद-नृपति-कुमार कहिहै, अब न कहिहै ग्वाल ।।
मुरलिका धुनि सप्त दिसि दिसि, चलौ निसान बजाइ ।
दिगविजय कौ जुवति-मडल-भूप परिहै पाइ ।।
सुरभि सखा सु सैन भट सँग, उठैगी खुर रैन ।
आतपत्र मयूर चंद्रिका, लसत है रविऐन ।।
मधुप बंदी जन सुजस कहि, मदन आयसु पाइ ।
द्रुम-लता-बन कुसुम बानक, बसन कुटी बनाइ ।।
सकल खग मृग पैक पायक, पौरिया, प्रतिहार ।
‘सूर’ प्रभु ब्रज राज कीजै, आइ अबकी बार ।। 3227 ।।