मीराँबाई की पदावली
राग होरी सिन्दूररा
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ बादल
- ↑ खेलि प्यारी
- ↑ मनारे = हे मन। चार = थोड़े से ही। करताल = ताली की ध्वनि। अणहद = भीतर का अनाहत शब्द। झणकार = ध्वनि। सुर = स्वर। राग छतीसूँ = छः राग व तीस रागिनियाँ। रोम रोम = रोम रोम वा सर्वांग में व्याप्त। रँग = रंग, नृत्य गीत, आदि। सार = श्रेष्ठ, उत्तम। पिचकारी = पिचकारी। अंबर = आकाश। रंग बरसत = शोभा हो रही है। अपार = अत्यन्त, खूब। घट = हृदय। पद = आवरण। डार = दूर करके। बलिहार = बलिहारी जाती हूँ।
विशेष- अनहद वा अनाहत नाद एक प्रकार का अस्फुट शब्द है जो दोनो हाथों के अँगूठों से दोनो कानों की लंबे बंद करके ध्यान पूर्वक सुनने से सुनाई पड़ता है। योगी लोग इसे समाधि के समय सुना करते हैं। मीराँबाई ने इस पद में होली के रूपक द्वारा एक प्रकार की सहज सामवि का ही वर्णन किया है।
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज