बनत नहि राधे मान किये।
नंदलाल आरति करि पठई, सौह करति हौ सीस छिये।।
जाके पद कमला कर लीन्हे, मन-बच-क्रम चित उन्है दिये।
ता प्रभु की पठई आई हौ तू जु गर्व की मोट लिए।।
हरि मुख कमल सच्यौ रस, सजनी अति आनंद पियूष पिये।
'सूरदास' सकल सुख हरि सँग, कृपा बिमुख का कल्प जिये।।2582।।