बसुद्यौ कुल ब्यौहार बिचारि -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग बिलावल


बसुद्यौ कुल ब्यौहार बिचारि।
हरि हलधर कौ दियौ जनेऊ, करि षटरस ज्यौनारि।।
जाके स्वास उसांस लेत मै प्रगट भए श्रुति चार।
तिन गायत्री सुनी गर्ग सौ प्रभु गति अगम अपार।।
बिधि सौ धेनु दई बहु बिप्रनि, सहित सर्वऽलकार।
जदुकुल भयौ परम कौतूहल, जहँ लहँ गावतिं नार।।
मातु देवकी परम मुदित ह्वै, देति निछावरि वारि।
'सूरदास' की यहै आसिषा, चिर जियौ नंद कुमार।।3093।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः