श्री द्वारिकाधीश -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
85. शाप की परिणति
उद्धव द्वारिका से विदा हुए और वहाँ ग्रह-नक्षत्रों में, अन्तरिक्ष में, पृथ्वी पर अपशकुनों का ताँता लग गया। उल्कापात होने लगा, गगन से रक्त की वर्षा होने लगी। धूमकेतु का उदय हुआ। ग्रह स्थिति द्वारिका के लिए सर्वथा विनाशक हो गयी। सूर्य और चन्द्र दोनों पर धूसर अरुणाभ मण्डल दीखने लगा। बिना मेघ विद्युत गिरने लगी और वायु बहुत रूक्ष चलने लगी। पुष्प वृक्षों में बिना ऋतु के फूल आ गये। समीप के वनों में बाँस फल गया। कुत्ते रात्रि भर रुदन करने लगे। दिन में प्रायः सायंकाल एवं सूर्योदय के समय श्रृगाल नगर में आकर बोलने लगते थे। भूमि के भीतर से गर्जन का शब्द आने लगा। भवनों पर रात्रि में उलूक भयानक स्वर में लोगों का नाम लेकर पुकारने लगा। चमगादड़ भवनों में बसने का प्रयत्न करने लगे। इन अपशकुनों को देखकर सुधर्मा सभा में श्रीकृष्णचन्द्र ने कहा- 'ये महोत्पात द्वारिका में अब सर्वत्र हो रहे हैं और यदुकुल को ऋषिगणों का भयानक शाप है ही। अतः अब यहाँ एक मुहूर्त भी रहना नहीं चाहिए। यह पुरी समुद्र गर्भ में है। किसी भी क्षण कुछ भी हो सकता है। अतः किसी भी यादव को यहाँ रुकना नहीं चाहिए। स्त्रियों, बालकों तथा वृद्धों को तत्काल शङ्खोद्धार क्षेत्र में भेजें और हम सब प्रभास जायँगें। 'प्रभास में पुण्य सरिता प्रत्येक सरस्वती हैं।[2] वहाँ स्नान करके पवित्र होकर उपवास करके एकाग्र चित्त से हम देवताओं की भली प्रकार महाराजोपचारपूर्वक पूजा करेंगे। ब्राह्मणों द्वारा स्वस्ति पाठ कराके उन्हें गायें, भूमि, वस्त्र, स्वर्णादि दान करेंगे। अरिष्ट-शमन के लिए यही विधि संभव है। 'दक्ष के शाप से जब इन्द्र यक्ष्माग्रस्त हो गये थे तब प्रभास में स्नान करके ही वे रोगमुक्त हुए थे। उस परम पावन क्षेत्र मे स्नान करके, ब्राह्मणों को भोजन कराके उनको श्रद्धापूर्वक विपुल दान से संतुष्ट करना यही इस संकट से- समुद्र को नौका से पार करने के समान उपाय मुझे लगता है, अतः हम आज ही प्रस्थान करें।' |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ऐसे स्वप्नों तथा अशुभों का वर्णन 'भगवान वासुदेव' में कंस के स्वप्न-प्रसंग में विस्तार से दिया गया है।
- ↑ 'सप्तस्त्रोता सरस्वती' सात सरिताओं का नाम सरस्वती है। एक बद्रीनाथ से ऊपर माना गाँव के समीप, दूसरी कुरुक्षेत्र में, तीसरी व्रज में, चौथी सिद्धपुर में, पाँचवीं प्रभास में, छठी प्रयाग में गुप्त अर्थात भूमि के भीतर और सातवीं गंगासागर क्षेत्र में।
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