श्री द्वारिकाधीश -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
38. द्विविद–दलन
अधर्म करके, निरीह लोगों को मारकर ऋर्षि-मुनियों का अपराध करके कोई कब तक सकुशल रह सकता है। द्विविद के अत्याचारों का कोई प्रतिकार नहीं हुआ तो वह और अधिक उन्मद हो गया। उसका गर्व बढ़ता चला गया। भगवान बलराम अपनी पत्नियों के साथ रैवतकगिरि पर पधारे थे। वहाँ वे रानियाँ तथा साथ आयी सेविकाएँ गा रही थीं। श्रीसंकर्षण पत्नियों के साथ जल-विहार कर रहे थे। द्विविद पर्वत पर आया और वह गायनध्वनि सुनकर वहाँ पहुँच गया। दुष्ट वानर वृक्षों को कम्पित करता कूदने लगा वहाँ। वह किलकिलाहट करके, कूदकर नारियों को भयभीत करना चाहता था। उसकी धृष्टता देखकर श्रीसंकर्षण की रानियाँ हँस पड़ीं। भला उन अनन्त के रहते वे भयभीत क्यों होने लगीं। इस हास्य से क्रुद्ध होकर द्विविद ने वानर जाति की सबसे बड़ी गाली दी- उन्हें अपना मलमार्ग दिखलाया। कपि किसी का अतिशय अपमान करने के लिए यह करते हैं। श्रीबलराम ने एक पत्थर उठाया और फेंका। वे वानर को भगा देना चाहते थे, किन्तु द्विविद पत्थर को बचाकर नीचे कूद आया, उसने तट पर रखे वस्त्र फाड़ दिये और वारुणी का कलश पटकर फोड़ दिया। 'यह तो वही दुष्ट वानर द्विविद है जिसके अत्याचार से प्रजा संत्रस्त हो रही है।' यह बात अब श्रीबलराम के ध्यान में आयी। क्रोध में वे जल से निकले और हल-मुशल उठाया। द्विविद ने एक शालवृक्ष उखाड़ लिया। और उसके पत्ते नोंचकर पेड़ पटक दिया था संकर्षण पर; किन्तु मुशल के प्रहार से बलराम जी ने वृक्ष के सैकड़ों टुकड़े कर दिये। उनके मुशल के आघात से द्विविद के सिर से रक्त धारा बह चली। द्विविद ने चोट की चिन्ता नहीं की। वह एक के पश्चात दूसरा वृक्ष उखाड़ता-फेंकता गया। पूरा वन वृक्षों से रहित हो गया तो दोनों हाथों से शिलाएँ उठाकर आघात करने लगा। श्रीबलराम के आस-पास चारों ओर वृक्ष छिन्न-भिन्न टुकड़ों की राशि बन गयी। शिलाओं को उनका मुशल चूर्ण करता रहा। अन्त में द्विविद ने ताल के समान भुजाएँ उठायीं और दोनों मुट्ठियाँ बाँधकर श्रीसंकर्षण के वक्ष पर प्रहार किया। श्रीसंकर्षण ने शीघ्रता से हल-मुशल त्यागकर द्विविद का कण्ठ पकड़ लिया और उसकी जत्रु[1] कसकर दबाकर चूर्ण कर दी। रक्तवमन करता द्विविद गिर पड़ा। सम्पूर्ण पर्वत उसके गिरने से काँप उठा। रैवतक पर जहाँ श्रीबलराम जी ने प्रजा को उत्पीड़ित करने वाले द्विविद को मारा, वह स्थान कपिटङ्क तीर्थ के रूप में प्रख्यात हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ गले की हड्डी
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