प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेम-योगहम तौरे इश्क से तो वाकिफ नहीं हैं, लेकिन सीने में कोई जैसे दिल को मला करै है। भोला भाला मीर प्रेम का लक्षण भला क्या जाने। वह तो सिर्फ इतना ही जानता है, जैसे कोई अपने दिल को उसके सीने में मल रहा हो। क्या इसी को प्रेम कहते हैं? ऐसा ही कुछ और- इश्को मुहब्बत क्या जानूँ, लेकिन इतना मैं जानूँ हूँ,
सम्यङ्मसृणितस्वान्तो समत्वातिशयांकितः। जिससे हृदय अतिशय कोमल हो जाता है, जिससे अत्यंत ममता उत्पन्न होती है, उसी भाव को बुद्धिमान् जन परम प्रेम कहते हैं। परमानुराग ही प्रेम है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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