प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 7

प्रेम योग -वियोगी हरि

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प्रेम-योग

वास्तव में, इस पराभूत परिश्रान्त हृदय का विश्रान्ति स्थल एक प्रेम ही है। आत्मा के अनुकूल केवल एक प्रेम ही है। आत्मा स्वतः प्रेमस्वरूप है। संसार में अत्यंत उज्ज्वल और अतिशय पवित्र प्रेम ही है। और सब अनित्य है, प्रेम ही नित्य है। ध्रुव के समान अचल है। उसे हम अजर अमर क्यों न कहें। जो रसरूप है, आनन्दघन है, वही प्रेम परमात्मस्वरूप है। पर ऐसा विशुद्ध प्रेम यहाँ दुर्लभ है। कहाँ हैं उसके अनन्य अधिकारी यहाँ!!भवभूति की यह प्रेम परिभाषा बड़ी सुंदर है। कवि ने प्रेमानुभव समझाने की अच्छी चेष्टा की है और उसे इसमें सफलता भी मिली है। खासी विस्तृत परिभाषा है। पर इश्क की दुनिया में कुछ ऐसे भी मस्त हो गये हैं, जो अपना प्रेमानुभव कहने को जैसे तैसे खड़े तो हुए, पर ठीक-ठीक कुछ न कह न सके, यों ही कुछ कहकर रह गये। गालिब को ही लीजिए। कहते हैं-

शायद इसी का नाम मुहब्बत है शेफता,
एक आग सी है दिल में हमारे लगी हुई।

मालूम नहीं यह क्या है। दिल में आग सी लगी हुई है। क्या इसी आग सी लगने का नाम ही लगन है? मुहब्बत शायद इसी को कहते होंगे। हम यह नहीं कहते कि दिल में आग लगी है। आग तो नहीं है, पर कुछ आग सी लगी है। न जाने, यह क्या बला है। आनन्दघन भी कुछ ऐसी ही बात कह रहे हैं-

जबतें निहारे घनआननंद सुजान प्यारे,
तबतें अनोखी आगि लागि रही चाहकी।

उर्दू शायरी के उस्ताद मीर भो गालिब की ही तरह इश्क से नावाकिफ हैं? उन्होंने इश्क की तारीफ यों की है-

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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