प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 48

प्रेम योग -वियोगी हरि

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लौकिक से पारलौकिक प्रेम

सो साहिब सों इश्क वह कर क्या सकै गँवार।।

वह लौकिक प्रेम में मतवाला भी कितना बड़भागी है, कैसा पहुँचा हुआ है, जो अपने प्रेम पात्र से यह कहता हुआ अमर-धाम को जा रहा है-

परस्तिशकी याँ तक कि, ये बुत? तुझे,
नजर में सबों की खुदा कर चले। - मीर

प्यारे ईश्वर का आराधन करना भला मैं क्या जानूँ। मैंने तो एक तेरी ही उपासना की है, तुझे ही ईश्वर माना है। सो आज मैं तुझे केवल अपनी ही दृष्टि में नहीं, बल्कि सारे जहान की नजर में खुदा बनाकर जा रहा हूँ। इन हजरत ने देखा किस मजे के साथ दुनियाबी प्रेम से खुदाई प्रेम की तरफ अपने जीवन की आखिरी मंजिल तय की है! खूब किया यार, जो-

नजर में सबों की खुदा कर चले।

प्रेम तो प्रेम ही रहेगा, चाहे वह किसी व्यक्ति विशेष के प्रति हो, चाहे ईश्वर के प्रति। पर जो प्रेम ही नहीं है, वह ईश्वर परमेश्वर के प्रति होने पर भी प्रेम नहीं है। लौकिक हो वा अलौकिक, मजाजी हो या हकीकी, किसी भी दरजे का हो, पर होना चाहिए वह प्रेम सच्चा। विश्व विख्यात प्रेमी मजनूँ का प्रेम कितना ऊँचा, कितना सच्चा और कितना पवित्र था। क्या ही अद्वितीय अनन्यता थी मजनूँ के प्रेम में। एक दिन परमात्मा ने प्रकट होकर उस पगले से कहा- ‘अरे मूर्ख! तू मेरी उपासना क्यों नहीं करता? क्यों एक मामूली लड़की के प्रेम में अपने को तबाह कर रहा है?’ इस पर अल्लाह को हजरत क्या जवाब देते हैं- ‘मुझे क्या पड़ी है, जो तुझे पूजत फिरूँ! मैं अपनी लैला के सिवा और किसी को नहीं पहचानता। क्या हुआ जो तू खूदा है, मैं तेरी तरफ देखूंगा भी नहीं। तू मेरी प्यारी लैला तो है नहीं। हाँ, लैला की प्यारी सूरत में जो तूने आपना दीदार दिया होता तो जरूर यह खाकसार तेरे कदमों पर अपना सर रख देता, तुझे अपनी आँखों पर बिठा लेता, अपने दिल के अंदर छुपा लेता है। पर मुश्किल तो यह है कि तू लैला नहीं है, एक मामूली खुदा है।’ वाह अल्लाह भी मजनूँ को लैला ही नजर आता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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