प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 340

प्रेम योग -वियोगी हरि

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स्वदेश प्रेम

अरे, बड़ी कठिन है देश की सेवा। बातें बनाना तो बड़ा आसान है, पर मर्दानगी से कुछ कर दिखाना जहर का घूँट पीना है। जिन अल्हड़ सुपूतों ने इस प्रेम पथ पर पैर रखा, उन्हें लाखों मुसीबतें झेलनी पड़ीं। कथनी और करनी में पृथ्वी और आकाश का अंतर है। कबीर साहब कहते हैं-

कथनी मीठी खाँड़ सी, करनी बिष की लोय।
कथनी तजि करनी करै, विष से अमृत होय।।

वही कुछ कर गुजरता है, जिसे बातें बनाना नहीं आता, सर देना आता है। जो अपनी खुदी को किसी लगन की आग में जला जानता है, वही यह देश की होली खेल जानता है। मौत को छाती से लगाना हममे से आज कितने जानते हैं, अपने पवित्र रक्त से भक्ति पूर्वक प्यारी माता के पाद पद्म पखारना हमने अभी सीखा ही कहाँ है? रक्त दान माता को अभी दिया ही कितनों ने है, माँ के एक पगले लड़के ने उसके पैरों पर अपनी रक्तांजलि चढ़ाते समय, उस दिन कहा था-

'मुझ जैसे गरीब और मूर्ख पुत्र के पास तेरी भेंट के लिए माँ अपने रक्त के अतिरिक्त और हो ही क्या सकता है, सो अब इसे ही तू स्वीकारर कर।'

धन्य तुझे, कोई कुछ कहे, तू तो अमर हो गया-
फटे हुए माता के अंचल को बढ़कर सीने वाले।
तुझे बधाई है ओ पागल! मरकर भी जीने वाले!

ऐसे उन सभी लालों को बधाई है, जिन्होंने फाँसी की रंगीली रस्सी चूमकर प्यारी मौत को छाती से लगाया है। वे सारे कोहनूर अनन्त काल तक माता के ताज में जड़े रहेंगे। वे मुक्ति न चाहेंगे। उनकी कामना तो यह है कि वे बार बार भारत माता की ही गोद में जन्म लें और उसी की सेवा करते हुए प्राण पुष्पांजलि चढ़ाया करें।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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