प्रेम योग -वियोगी हरि
स्वदेश प्रेमअरे, बड़ी कठिन है देश की सेवा। बातें बनाना तो बड़ा आसान है, पर मर्दानगी से कुछ कर दिखाना जहर का घूँट पीना है। जिन अल्हड़ सुपूतों ने इस प्रेम पथ पर पैर रखा, उन्हें लाखों मुसीबतें झेलनी पड़ीं। कथनी और करनी में पृथ्वी और आकाश का अंतर है। कबीर साहब कहते हैं- कथनी मीठी खाँड़ सी, करनी बिष की लोय। वही कुछ कर गुजरता है, जिसे बातें बनाना नहीं आता, सर देना आता है। जो अपनी खुदी को किसी लगन की आग में जला जानता है, वही यह देश की होली खेल जानता है। मौत को छाती से लगाना हममे से आज कितने जानते हैं, अपने पवित्र रक्त से भक्ति पूर्वक प्यारी माता के पाद पद्म पखारना हमने अभी सीखा ही कहाँ है? रक्त दान माता को अभी दिया ही कितनों ने है, माँ के एक पगले लड़के ने उसके पैरों पर अपनी रक्तांजलि चढ़ाते समय, उस दिन कहा था- 'मुझ जैसे गरीब और मूर्ख पुत्र के पास तेरी भेंट के लिए माँ अपने रक्त के अतिरिक्त और हो ही क्या सकता है, सो अब इसे ही तू स्वीकारर कर।' धन्य तुझे, कोई कुछ कहे, तू तो अमर हो गया- ऐसे उन सभी लालों को बधाई है, जिन्होंने फाँसी की रंगीली रस्सी चूमकर प्यारी मौत को छाती से लगाया है। वे सारे कोहनूर अनन्त काल तक माता के ताज में जड़े रहेंगे। वे मुक्ति न चाहेंगे। उनकी कामना तो यह है कि वे बार बार भारत माता की ही गोद में जन्म लें और उसी की सेवा करते हुए प्राण पुष्पांजलि चढ़ाया करें। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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