प्रेम योग -वियोगी हरि
स्वदेश प्रेमउनके मरघटों से प्रेम की लपट सदा उठा करे, उनकी कब्रों की मिट्टी से हुब्बे वतन की खुशबू आया करे- दिल से निकलेगी न मरकर भी वतन की उल्फत; जहाँ की भी मिट्टी से यह देश प्रेम की खुशबू आ रही हो, वह जगह किस काशी या काबे से कम है? सच्चा तीर्थ स्थान वही है, जहाँ किसी देश प्रेमी ने अपनी मातृ भूमि पर प्राणों के पवित्र पुष्प चढ़ाये हों। अमर शहीदों के इन तरण- तारण तीर्थों की महिमा कौन गा सकता है? धन्य है वह पथ, जिस पर हो वे देश के मतवाले लाल मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जाते हैं। एक पुष्प की अभिलाषा देखिये- चाह नहीं, मैं सुर बाला के गहनों में गूँथा जाऊँ, हमें चाहिए कि और नहीं तो कभी कभी दो बूँद आँसू तो उन शमशानों पर, उन कब्रों पर चढ़ा दिया करें। उन कब्रों पर हमारा वह रोना ऐसा हो, जो औरों को भी रुला दे। हम बेकस और कर ही क्या सकते हैं- हर दर्दमंद दिल को रोना मेरा रुला दे, |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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