प्रेम योग -वियोगी हरि
स्वदेश प्रेमतभी तो यह विवेकी और तेजस्वी भारत उस मतवाली मजुदूरिन को एक दिन अपने साम्राज्य की रानी बनाने जा रहा है। जो उस पर बलि बलि जा रही है, वही रानी होगी- इसमें संदेह ही क्या? जो सेवा करेगा, वही मेवा खायेगा। मजदूर अपने देश पर मरना जानता है। किसान अपने प्यारे खेत में खाद की तरह खप जाना चाहता है। इसलिए भारत आज उन्हें अपने अंक में भररहा है, उन्हें अपना रहा है और खुद उनका बन रहा है। वह तो प्रेम का भूखा है। देश उसी का है जो उस पर प्रेमपूर्वक बलि हो जाता है। पूँजीपतियों के प्रेम हीन हृदयों में वह कैसे रह सकता है? मुक्त पुरुषों के देश को ये क्षुद्र लक्ष्मी के दास कब तक कैद किये रहेंगे, निश्चय है कि वह इन मदान्ध सत्ताधारियों के हाथ से मुक्त होगा और अवश्य होगा। पर उसे करेंगे स्वतंत्र वे ही डरावने अस्थि कंकाल, जिनकी नस नस का खून बड़ी निर्दयता से चूस लिया गया है, पर जिनके दिलों में देश प्रेम का तूफानी समुद्र अब भी क्रांति क्रीड़ा कर रहा है, जिनकी यही एकमात्र अभिलाषा है, वे ही स्वतंत्र भारत का मुखचंद्र देखेंगे- गर्दो गबार याँका खिलअत है अपने तनको; 'यह प्रेम कौ पंथ करार महा तरवार की धार पै धावनो है'- इस भीषण सत्य का प्रत्यक्ष अनुभव एक देश प्रेमी को ही होता है। खाँड़े की धार पर दौड़ना है देश से प्रीति जोड़ना और अंत तक उसे एकरस निभा ले जाना। एक पंजाबी गीत में कोई पागल प्रेमी गा गया है- सेवा देश की जिंदड़िये बड़ी औखी, |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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