प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 339

प्रेम योग -वियोगी हरि

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स्वदेश प्रेम

तभी तो यह विवेकी और तेजस्वी भारत उस मतवाली मजुदूरिन को एक दिन अपने साम्राज्य की रानी बनाने जा रहा है। जो उस पर बलि बलि जा रही है, वही रानी होगी- इसमें संदेह ही क्या? जो सेवा करेगा, वही मेवा खायेगा। मजदूर अपने देश पर मरना जानता है। किसान अपने प्यारे खेत में खाद की तरह खप जाना चाहता है। इसलिए भारत आज उन्हें अपने अंक में भररहा है, उन्हें अपना रहा है और खुद उनका बन रहा है। वह तो प्रेम का भूखा है। देश उसी का है जो उस पर प्रेमपूर्वक बलि हो जाता है। पूँजीपतियों के प्रेम हीन हृदयों में वह कैसे रह सकता है? मुक्त पुरुषों के देश को ये क्षुद्र लक्ष्मी के दास कब तक कैद किये रहेंगे, निश्चय है कि वह इन मदान्ध सत्ताधारियों के हाथ से मुक्त होगा और अवश्य होगा। पर उसे करेंगे स्वतंत्र वे ही डरावने अस्थि कंकाल, जिनकी नस नस का खून बड़ी निर्दयता से चूस लिया गया है, पर जिनके दिलों में देश प्रेम का तूफानी समुद्र अब भी क्रांति क्रीड़ा कर रहा है, जिनकी यही एकमात्र अभिलाषा है, वे ही स्वतंत्र भारत का मुखचंद्र देखेंगे-

गर्दो गबार याँका खिलअत है अपने तनको;
मरकर भी चाहते हैं खाके वतन कफन को।। - चकबस्त

'यह प्रेम कौ पंथ करार महा तरवार की धार पै धावनो है'-

इस भीषण सत्य का प्रत्यक्ष अनुभव एक देश प्रेमी को ही होता है। खाँड़े की धार पर दौड़ना है देश से प्रीति जोड़ना और अंत तक उसे एकरस निभा ले जाना। एक पंजाबी गीत में कोई पागल प्रेमी गा गया है-

सेवा देश की जिंदड़िये बड़ी औखी,
गल्ला करनियाँ ढेर सुखल्लियाने।
जिन्हाँ इस सेवा बिच पैर पाया,
उन्हें लक्ख मुसीबताँ झल्लियाने।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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