प्रेम योग -वियोगी हरि
मातृ भक्तिजा दिनतें हम तुमतें बिछुरे, काहु न कह्यौ कन्हैया। माँ! तू ही भारती है, तू ही कमला है और तू ही काली है। माँ! तू ही शक्ति है, तू ही भुक्ति है और तू ही मुक्ति है। तू ही जयदा है और तू ही वरदा है। तू ही क्षीरदा है और तू ही अन्नदा है। तीर भूखी प्यासी संतान सदा तेरा ही स्मरण करेगी- किसी को तू नील निचोल धारण करके दर्शन देती है, तो किसी के ध्यान पथ पर श्वत साड़ी पहनकर आ जाती है। पर, माँ! हमें तो तू आज रक्ताम्बर धारण करके ही दर्शन दे। अग्नि वीणा बजाने वाले के ज्वलन्त नेत्रों में तू लाल साड़ी पहनकर ही तो ताण्डव किया करती है। वही ताण्डवनृत्य दिखा दे, पगली माँ! हम तेरी साधना करना क्या जानें। जननि! साधक तो तेरा लाड़ला पुत्र रामकृष्ण परमहंस था। हमलोग तो अभी तक तेरी आज्ञा का रहस्य ही नहीं समझ पाये। हम तो कुपुत्र हैं, माँ! कुपुत्र। क्षमा कर करुणामयि! पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहवः सन्ति सरलाः माँ! तू मुझे छोड़ रही है? क्या यह त्याग तुझे शोभा देगा? मुझे तो विश्वास नहीं होता कि तू मेरा वस्तुतः परित्याग कर ही देगी। क्या हुआ जो मैं कुपुत्र हूँ। यह कोई अनोखी वा अनहोनी बात नहीं है। कुपुत्र तो हो सकता है और होता ही है, पर क्या कहीं कुमाता भी होती है? तू यों ही धमका रही है, मुझे छोड़ेगी नहीं। मैं मानता हूँ कि तेरी किसी भी आज्ञा का पालन नहीं कर रहा हूँ। अवश्य ही मैं एक महान् अपराधी हूँ, पर अपराधी हूँ तो तेरा और अनाज्ञाकारी हूँ तो तेरा। हूँ मैं सर्वथा तेरी ही। तेरा स्वभाव तो, माँ! प्यार करने का ही है न? सरले! तू तो प्यार दुलार करना ही जानती है न? तो फिर यह सन्तति त्याग तुझे शोभा देगा? अच्छा, थोड़ी देर को तू अब छोड़ ही देख। तू ऐसा कर न सकेगी। तेरे लिये, माँ, यह असंभव है- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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