प्रेम योग -वियोगी हरि
मधुर रतिजदपि जसोदा नन्द अरु, ग्वाल बाल सब धन्य। नन्ददासजी ने भी खूब कहा है- नाद अमृत कौ पंथ रंगीलो सूच्छम भारी। हरिश्चंद्र ने भी गोपी का महिमा गाकर अपनी सरसा रसना कृतार्थ की है- गोपिन की सरि कोऊ नाहीं। पगली, परदे को तोड़ दे। पिया को देखना चाहती है तो घूँघट का पट खोल दे। अंहकार का आवरण हटा दे। खुदी का कुर्ता फाड़कर फेंक दे। सुन- तोकों पीव मिलैंगे घूँघट का पट खोल, री। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज