प्रेम योग -वियोगी हरि
मधुर रतितेरे हाथ में आज अनायास ही अनमोल हीरा आ गया है। उसे यों ही न खो दे, पगली! तू कहा करती थी न कि- सो वह प्राण प्यारा अब मिल तो गया। पर उससे तू परदा क्यों कर रही है? वह तुझे अपना दीदार ते तो रहा है। बेखुदी की मस्ती में डूबकर उसे भेंट क्यों नहीं लेती? क्यों सो रही है अब तक? देखती नहीं, तेरा प्राण प्यारा स्वामी कब से तेरे पास खड़ा है? तू मति सोवै, री परी, कहौं तोहि मैं टेरि। तुझे क्या खबर कि वह तुझे कितना प्यार करता है! क्यों नहीं लूट लेती उसके मधुर प्रेम का खजाना? वह लुटा तो रहा है। न जाने तेरी नींद कब जायेगी और कब अपने प्रियतम के दीदार का मीठा मीठा रस पियेगा। हाय, हाय! इससे, एक बार फिर तुझे चेतावनी दी जाती है- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज