प्रेम योग -वियोगी हरि
मधुर रतितुम पथ हो, मैं हूँ रेणु। उस विश्व रमण की हृदय वल्लभा रमणी प्रेमोन्मत्त हो जब यह मधुमय गीता गीता है, तब समस्त प्रकृति मधुर रस के अगाध सागर में डूब जाती है। उस समय नित्य विहार का यह मधुर संगीत जगत् के अणु परमाणु में व्याप्त हो जाता है- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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