प्रेम योग -वियोगी हरि
मधुर रतिउठ गया परदा दुई का, दरमियाँ से देख ले, कभी यह दीपक है और वह पतंगा, तो कभी वह दीपक है और यह पतंगा- मैं कभी हूँ शमा, परवाना है तू, बोलो, तुम्हें क्या कहके पुकारूँ? और अपना भी आज क्या नाम रख लूँ? क्या तुम मेरे इस पागलपने के प्रलाप को पसंद करोगे, प्रियतम? क्या? यही कि- तुम मृदु मानस के भाव और मैं अनोरंजिनी भाषा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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