प्रेम योग -वियोगी हरि
वात्सल्य और तुलसीदासजननी निरखति बान धनुहियाँ। एक दिन, चित्रकूट की ओर जाता हुआ एक पथिक मिल गया। बड़े स्नेह से उसे पास बुलाकर महारानी कौशल्या कहने लगीं कि मेरे प्यारे राम से और नहीं तो इतना तो कह ही देना कि- राघव, एक बार फिरि आवौ! यहाँ सूर और तुलसी का भाव साम्य देखिये। सूरका एक पद है- ऊधो, इतनी कहियो जाय। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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