प्रेम योग -वियोगी हरि
वात्सल्य और तुलसीदाससूर ने गायों की पर्यायोक्ति द्वारा वात्सल्य रति को प्रकट किया है, तो तुसली भी वही स्वाभाविक स्नेह, घोड़ों का स्मरण कराकर व्यक्त कर रहे हैं। यहाँ भी वही बात है- जे पय प्याइ पोखि कर पंकज बार बार चुचुकारे। इन दोनों महाकवियों के वर्णनों में, यहाँ कैसा सुंदर भाव सादृश्य हुआ! एक और भाव साम्य देखिये। सूर की दो मर्म भेदिनी पंक्तियाँ हैं- प्रातः समय उठि माखन रोटी को बिनु माँगे देहै? अब, तुलसी की करुणामयी पंक्तियों का इनसे मिलान करें- को अब प्रात कलेऊ माँगत रूठि चलैगो, माई। कौशल्या आदि माताओं की वात्सल्य रति का एक सुंदर दृश्य और देखते चलें। आज वनवास की वह लम्बी अवधि समाप्त हुई है। लंकेश्वर विजेता राघवोत्तम राम, वीर श्रेष्ठ लक्ष्मण और मिथिलेश नन्दिनी सीता का अयोध्या में शुभागमन हुआ है। स्नेहोत्कण्ठिता माताओं की मिलन अधीरता का गोसाईं जी ने जो चारु चित्रण किया है, वह कैसा स्वाभाविक और अनुपमेय हुआ है- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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