प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 227

प्रेम योग -वियोगी हरि

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दास्य और सूरदास

दोषी, अपराधी, पात की, नारकीय मैं तभी तक हूँ, जब तक मुझे तुमने अपनी अभयप्रद शरण में नहीं ले लिया। यह तो मान चुका हूँ कि मुझसे अगणित अपराध हुए, हो रहे हैं और होंगे; क्योंकि यह तो मेरा स्वभाव है। पर तुम्हें ऐसा न चाहिए। नाथ! तुम्हें मेरे अपराधों को अपने वात्सल्य पूर्ण हृदय में स्थान न देना चाहिए! करुणा सागर! दास को इतना कठोर दण्ड क्यों दे रहे हो?

माधवजू! जो जनतें बिगरै।
तउ कृपालु करुनामय केसव, प्रभु नहिं जीय धरै।।
जैसे जननि जठर अंतरगत सुत अपराध करै।
तउ पुनि जतन करै अरु पोषै, निकसे अंक भरै।।
जद्यपि मलय वृक्ष जड़ काटत, कर कुठार पकरै।
तऊ सुमाय सुगंध सुसीतल निज भय दीन डरै।
इहि कलिकाल व्यालमुख ग्रासित ‘सूर’ सरन उबरै।।

बालक कितने ही अक्षम्य अपराध करे, माता पिता उसे त्याग नहीं देते। तनिक सोचने की बात है यदि वे ही उसे छोड़ दें, तो उस बेचारे का फिर पालन पोषण कौन करेगा? क्या मैं आज तुम्हारी गोद में बैठने का भी अधिकारी नहीं? करुणालय! यह निष्ठुरता तुम्हें शोभा नहीं देती। न जाने, तुम आज मेरे साथ कैसा कुछ व्यवहार कर रहे हो। तुम सा स्वामी ऐसा व्यवहार करेगा, यह मुझे आशा न थी। तुम्हें छोड़ यह अनाथ अब किसके द्वार पर जाय? किसका होकर रहे? प्रभो! सेवक की वेदना जानने वाले एक तुम्हीं हो। पर न जाने, आज तुम्हारी करुणा कहाँ चली गयी! मेरी बार तुम ऐसे निठुर, न जाने क्यों बन गये! क्या करूँ, कुछ समझ में ही नहीं आता। मुझे ही अपनाने में आज यह हिचकिचाहट हो रही है। कहीं अपना विरद तो नहीं भूल गये! यदि सचमुच भूल गये, तो फिर हो चुका! तब तो अब हमलोगों का खूब उद्धार होगा नाथ!

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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