प्रेम योग -वियोगी हरि
दास्य और सूरदासप्रभु, मेरे गुन अवगुन न विचारो। समुद्ररूपी दावात में गिरिराज की स्याही घोलकर यदि पृथिवी रूप पत्र पर मेरे किए हुए पापों को लिखने बैठ जाओ, तो भी प्रभो! उनकी तुहें मिति न मिलेगी। अतः मेरे दोषों की ओर देखना व्यर्थ है। तुम तो सब अपने ‘पतितोद्धार’ के प्रण को पूरा करो। तुम्हारा नाम समदर्शी है। प्रभो! गुण और अवगुण तुम्हारी दृष्टि में बराबर हैं। दास के दोष तभी तक दोष हैं, जब तक उसे स्वामी ने अंगीकृत नहीं कर लिया- प्रभु, मेरे औगुन चित न धरो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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