प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 225

प्रेम योग -वियोगी हरि

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दास्य और सूरदास

मेरी मुकुति विचारत हौ, प्रभु, पूछत पहर घरी।
स्रमतें तुम्हें पसीना ऐहै, कत यह जकनि करी।।
‘सूरदास’ बिनती कहा बिनबै, दोषहि देह भरी।
अपनो बिरद सँभारहुगे तब यामें सब निनुरी।।

बस, इसी में मेरी तुम्हारी सदा निभ सकेगी। करना चाहो तो अब भी फैसला कर सकते हो; मौका अभी हाथ से निकला नहीं। बोलो, तारते हो या नहीं?

नाथ! तुम मुजे अपना मानो या न मानो, पर हूँ मैं तुम्हारा ही। भला हूँ तो तुम्हारा और बूरा हूँ तो तुम्हारा। मेरी लाज तुम्हारे तुम बने रहो भले। मैं तो अब सब छोड़ छाड़कर तुम्हारी शरण में आ गया हूँ, तुम्हारे चरणों को आज पकड़ लिया है। सो, अब इस दास को अंगीकृत करो, इस पर अपनी छाप लगा दो। जैसे तुम रखोगे, वैसे रहूँगा। मैं तुम्हारी कोई खास कृपा नहीं चाहता। तुमसे क्या छिपा है। घट घट की जानते हो। अपना सुख दुख इस मुँह से क्या कहूँ। बस, यही विनय है-

कमल नयन, घनस्याम, मनोहर, अनुचर भयो रहौं।
‘सूरदास’ प्रभु भक्त कृपानिधि! तुम्हरे चरन गहौं।।

अंगीकार भर कर लो, नाथ! मैं तुम्हारी हर तरह की रजा में राज़ी रहूँगा-

जैसेहि राखौ तैसहि रहौं।
जानत हौ सुख दुख सब जनके, मुख करि कहा कहौं।।

क्या इसलिए नहीं अपना रहे हो कि मैं अवगुणों का आगार हूँ? सो तो निस्संदेह हूँ, नाथ! मेरे दोषों का कुछ पार! पर तुम्हें इस सबसे क्या?

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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