प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 221

प्रेम योग -वियोगी हरि

Prev.png

दास्य

अब तो तुम भलीभाँति समझ गये होगे कि मैं तुम्हारा सेवक तो निस्संदेह हूँ, पर सेवा करना नहीं जानता, या जानकर करना नहीं चाहता। है भी यही बात। माफ करना, मुझे नमक हरामी में ही मजा आता है। मुझे विश्वास नहीं होता कि तुम मुझे नौकरी से पृथक् क दोगे। क्या सचमुच ही अपने चरणों से मुझे अलग कर दोगे? हा हा! नाथ, ऐसा न करना. तुम्हारे कदमों की गुलामी बड़े भाग्य से मिली है। इस गुलामी को ही मैं आजादी समझता हूँ, और ऐसा समझना ही आज मेरे जीवन का सबसे बड़ा सत्य है। एक तो तुम मुझे निकालोगे नहीं, दूसरे मान लो, निकाल भी दिया तो मैं यह द्वार छोड़कर कहीं जाऊँगा नहीं। जाने को कहीं कोई ठौर ठिकाना भी तो हो, प्रभो!

तुम जहाज, मैं काग तिहारो, तुम तजि अनत न जाऊँ।
जो तुम प्रभु जू! मारि निकासो, और ठौर नहिं पाऊँ।।

इससे, सरकार, मुझे बरखास्त कर देने का विचार तो अब छोड़ ही दो।

नाथ! मुझे तो इसी का आज बड़ा अभिमान है कि तुम मेरे स्वामी हो और मैं तुम्हारा सेवक हूँ। तुम चंदन हो और मैं पानी हूँ। तुम श्यामघन हो और मैं तुम्हें देख देखकर थिरकने वाला मोर हूँ। प्यारे! तुम पूर्ण चंद्र हो और मैं तुम्हारा चाह भरा चकोर हूँ। तुम दीपक हो और मैं तुम्हारे प्रेम में बलने वाली बाती हूँ। तुम मोती हो औ मैं धागा हूँ। और प्रभो! तुम सुवर्ण हो और मैं तुसमे मिलने वाला सुहागा हूँ। अपने इस अभिमान को, नाथ, मैं स्वप्न में भी न छोड़ूँगा। अब संत रैदासजी की विमल वाणी में इस मुक्ति भावना को सुनें-

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः