प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 220

प्रेम योग -वियोगी हरि

Prev.png

दास्य

तुमकूँ हम से बहुत हैं, हमकूँ तुम से नाहिं।
‘दादू’ कूँ जनि परिहरौ, रहु नित नैनन माहिं।।

जो कहीं मुझे अपनी नौकरी से अलग कर दिया, तो फिर मैं कहाँ मारा- मारा फिरूँगा? लोग क्या कहेंगे, जरा ख्याल तो करो। मेरा नहीं, इससे तुम्हारी ही हँसी होगी स्वामी!

दीन दयालु सुनें जबतें तबतें मन में कछु ऐसी बसी हैं।
तेरो कहायकैं जाउँ कहाँ, तुम्हरे हित की पट खैंचि कसी है।।
तेरो ही आसरो एक ‘मलूक’ नहीं प्रभु सो कोउ दू जो जसी है।
एहो मुरारि, पुकारि कहौं अब, मेरी हँसी नहिं तेरी हँसी है।।

और तो नहीं, पर मेरे एक इस विषय की तुम भलीभाँति परीक्ष ले सकते हो कि धक्के मुक्के खाने पर भी मैं तुम्हारे द्वार से हटता हूँ या नहीं। चाहो तो मेरे इस गुण को अपनी कसौटी पर अभी कल लो-

तू साहिब, मैं सेवक तेरा। भावै सिर दै सूली मेरा।।
भावै करवत सिर पर सारि। मावै लेकरि गरदन मारि।।
मानै चहुँदिसि आगि लगाई। मानै काल दसौ दिसि खाइ।।
भावै गिरवर गगन गिराइ। भावै दरिया माहिं बहाइ।।
भावै कनक कसौडी देहु। ‘दादू’ सेवक कपि कसि छेहु।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः