प्रेम योग -वियोगी हरि
दास्यदीन दयालु कहाइकैं धाइकैं, दीनन सों क्यों सनेह बढ़ायो? हे प्रभो! मेरी नीचता देखकर संकोच न करो। इस अपार भव सरिता से पार कर दो- तारे तुम बहु पथिनकों यह नद धार अपार। मैं तुम्हारी सेवा पूजा करना क्या जानूँ, भगवन्! मैं एक दरजे का कामचोर तुम्हारी नौकरी कैसे बजा सकता हूँ! यदि पूछो, तो फिर तू जानता क्या है, तो जानता सिर्फ इतना हूँ कि मैं तुम्हारा एक नमक हराम नौकर हूँ। सुना है कि तुम मुझे बरखास्त कर रहे हो। गरीब पर वर, क्या यह सच है! कहीं ऐसा काम सचमुच कर न बैठना, मेरे मालिक! और चाहे जो सदा दे दो, पर अपने चरण न छुड़ाओ, मेरे स्वामी! तुम्हें छोड़ यहाँ मेरा और कौन है! मेरे जैसे तो तुम्हें सैकड़ों मिल जायेंगे- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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