प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 222

प्रेम योग -वियोगी हरि

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दास्य

अब कैसे छुटै नामरट लागी।
प्रभुजी, तुम चंदन हम पानी। जाकी अंग अंग बास समानी।।
प्रभुजी, तुम धन हम बनमोरा। जैसे चितवत चंद चकोरा।।
प्रभुजी, तुम दीपक हम बाती। जाकी ज्योति बरै दिन राती।।
प्रभुजी, तुम मोती हम धागा। जैसे सोनहं मिलत सोहागा।।
प्रभुजी, तुम स्वामी हम दासा। ऐसी भक्ति करै रैदास।।

तुम मेरे सेव्य हो और मैं तुम्हारा सेवक हूँ- बस, हम दोनों में यही एक संबंध अनन्तकाल पर्यन्त अक्षुण्य बना रहे। पूरी कर देने को कहो तो दास की एक अभिलाषा और है। वह यह है-

अहं हरे तव पादैकमूलदासानुदासो भवितास्मि भूयः।
मनः स्मरेतासुपतेर्गुणांस्ते गृणीत वाक् कर्म करोतु कायः।।

अर्थात्, हे भगवन्! मैं बार बार तुम्हारे चरणारविन्दों के सेवकों का ही दास होऊँ। हे प्राणेश्वर! मेरा मन तुम्हारे गुणों का स्मरण करता रहे। मेरी वाणी तुम्हारा कीर्तन किया करे और मेरा शरीर सदा तुम्हारी सेवा में लगा रहे।

किसी भी योनि में जन्म लूँ, ‘त्वदीय’ ही कहा जाऊँ, मुझे अपना कहीं और परिचय न देना पड़े। सेवक को इससे अधिक और क्या चाहिए। अंत में यही विनय है, नाथ!

अर्थ न धर्म न काम रुचि, गति न चहौं निर्बान।
जन्म जन्म रति राम पद, यह बरदान न आन।।
परमानन्द कृपायतन, मन परिपूरन काम।
प्रेम भगति अनपायिनी, देहु हमहिं श्रीराम।। - तुलसी

क्यों नहीं कह देते कि ‘एवमस्तु!’

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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