प्रेम योग -वियोगी हरि
विश्व प्रेमकारे तन अति चुवत गंड मद, बरसत थोरे थोरे। वे ही नीरद आज सुंदर श्याम के रूप साम्य के कारण कितने प्यारे लग रहे हैं कि कुछ कहते नहीं बनता- आजु धन स्याम की अनुहारि। जिस पपीहे के नाम के साथ कभी ‘पापी’ का विश्लेषण लगाया जाता और जिसका इन शब्दों से स्वागत सत्कार किया जाता था कि- उसी को आज व्रज बालाओं के मुख से यह शुभाशीर्वाद मिल रहा है- बहुत दिन जीवौ पपिहा प्यारो। प्रेम की इस विश्व विहारिणी भावना में चर और अचर सभी अपने आत्मीय और प्राण प्रिय लगने लगते हैं। उद्धव ने प्रेमाश्रुपूर्ण नेत्रों को देखकर प्रिय विरहाकुल व्रजवासियों ने कहा था कि आज हमारी प्यासी आँखों का अहोभाग्य, जो उन आँखों की प्रेम सुधा पी रही हैं, जिन्होंने प्यारे कृष्ण के रूप रस का दिन रात अतृप्त पान किया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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