प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 200

प्रेम योग -वियोगी हरि

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कुछ आदर्श प्रेमी

यहाँ भी वही एकांगी प्रीति है। तो क्या सभी आदर्श प्रेमियों का प्रेम एकांगी ही होता है? इसमें संदेह ही क्या। प्रेमी, एकांगी प्रेम की अवस्था में ही अपने प्रेमास्पद के चरणों पर अपना प्यारे से प्यारा जीवन कुसुम चढ़ा सकता है। इसी अवस्था में उसके प्रेम का पूर्ण विकास होता है।

अच्छा, चकोरी के आग खाने में क्या रहस्य है? यह भी क्या कोई प्रेम साधना है? हाँ, अवश्य, यह भी एक साधना है और बड़ी ऊँची साधना है। इस विचार से चकोरी अंगार खाती है कि मैं भस्म हो जाऊँ, कदाचित् स भस्म को शिवजी अपने ललाट पर लगालें और वहाँ प्यारे चंद्र से मेरी भेंट हो जाय! धन्य है उसकी यह प्रिय दर्शनाभिलाषा!

प्रियसों मिलौं मभूति बनि ससि सेखर के गात।
यहै बिचारि अँगारकों चाहि चकोर चबात।।

अंगार चबाने का, लो, यह जवाब है। अब भी कुछ शंका है? चकोरी! इतनी अधीर मत हो। धीरज धर। सदा यह अँधेरी रात न रहेगी। धीरे धीरे इसी तरह पूर्णिमा आ जायेगी और तेरा प्रियतम तुझे दर्शन देगा-

सोच न करै चकोरि! चित, कुहू कुनिसा निहारि।
सनै सनै ह्वैहै उदै राकाससि तम टारि।।
राका ससि तम टारि, दूर दुख करिहै तेरो।
धीर धरै किन, बीर, कहा अकुलाय घनेरो।।
बरनै दीनदयाल लकैगी तू भरि लोचन।
जो तेरो प्रिय प्रान, मिलैगो सो, अब सोच न।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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