प्रेम योग -वियोगी हरि
कुछ आदर्श प्रेमीयहाँ भी वही एकांगी प्रीति है। तो क्या सभी आदर्श प्रेमियों का प्रेम एकांगी ही होता है? इसमें संदेह ही क्या। प्रेमी, एकांगी प्रेम की अवस्था में ही अपने प्रेमास्पद के चरणों पर अपना प्यारे से प्यारा जीवन कुसुम चढ़ा सकता है। इसी अवस्था में उसके प्रेम का पूर्ण विकास होता है। अच्छा, चकोरी के आग खाने में क्या रहस्य है? यह भी क्या कोई प्रेम साधना है? हाँ, अवश्य, यह भी एक साधना है और बड़ी ऊँची साधना है। इस विचार से चकोरी अंगार खाती है कि मैं भस्म हो जाऊँ, कदाचित् स भस्म को शिवजी अपने ललाट पर लगालें और वहाँ प्यारे चंद्र से मेरी भेंट हो जाय! धन्य है उसकी यह प्रिय दर्शनाभिलाषा! प्रियसों मिलौं मभूति बनि ससि सेखर के गात। अंगार चबाने का, लो, यह जवाब है। अब भी कुछ शंका है? चकोरी! इतनी अधीर मत हो। धीरज धर। सदा यह अँधेरी रात न रहेगी। धीरे धीरे इसी तरह पूर्णिमा आ जायेगी और तेरा प्रियतम तुझे दर्शन देगा- सोच न करै चकोरि! चित, कुहू कुनिसा निहारि। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज