प्रेम योग -वियोगी हरि
कुछ आदर्श प्रेमीपरेवा भी एक ऊँचा प्रेमी है। प्रीति की दौड़ में वह किसी प्रेमी से पीछे रह जाने वाला नहीं। आकाश में कितना ही ऊँचा क्यों न उड़ रहा हो, पर अपनी प्यारी परेई को जाल में फँसी हुई देखकर तत्क्षण प्रेमाधीर हो आप भी वहीं गिर पड़ता है! वह वियोग व्यथा सह ही नहीं सकता- प्रीति परेवाकी गनौ, चाह चढ़त आकास। दाम्पत्य जीवन का सुख कबूतर – कबूतरी ने ही जाना है। हाँ, और किसे नसीब होगा ऐसा सहज सुख। कविवर बिहारी ने अपने इस दोहे में परेवा के सुखमय जीवन की कैसी सराहना की है- पटु पाँखै, भखु काँकरै, सपर परेई संग। भाई परेवा! पृथिवी पर एक तू ही सुखी है। वस्त्र तो तेरा पंख ही है, जो सदा तेरे पास रहता है और कंकड़ ही तेरा भक्ष्य है जो सर्वत्र मिल सकता है। न तुझे वस्त्र की ही कमी है, न भोजन का ही अभाव है, और, यह तेरी सचहारिणी प्यारी परेई तेरे साथ में है ही। अब दाम्पत्य जीवन में और क्या सुख चाहिए? और, कपोत व्रत तो अनुपम है ही! वाह! तब क्यों न इस पक्षी को हम एक आदर्श प्रेमी के रूप में देखें? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज