प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 201

प्रेम योग -वियोगी हरि

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कुछ आदर्श प्रेमी

परेवा भी एक ऊँचा प्रेमी है। प्रीति की दौड़ में वह किसी प्रेमी से पीछे रह जाने वाला नहीं। आकाश में कितना ही ऊँचा क्यों न उड़ रहा हो, पर अपनी प्यारी परेई को जाल में फँसी हुई देखकर तत्क्षण प्रेमाधीर हो आप भी वहीं गिर पड़ता है! वह वियोग व्यथा सह ही नहीं सकता-

प्रीति परेवाकी गनौ, चाह चढ़त आकास।
तहँ चढ़ि तीय जु देखही, परत छाड़ि उर स्वास।। - सूर

दाम्पत्य जीवन का सुख कबूतर – कबूतरी ने ही जाना है। हाँ, और किसे नसीब होगा ऐसा सहज सुख। कविवर बिहारी ने अपने इस दोहे में परेवा के सुखमय जीवन की कैसी सराहना की है-

पटु पाँखै, भखु काँकरै, सपर परेई संग।
सुखी, परेवा, पुहुमि पै, एकै तुही बिहंग।।

भाई परेवा! पृथिवी पर एक तू ही सुखी है। वस्त्र तो तेरा पंख ही है, जो सदा तेरे पास रहता है और कंकड़ ही तेरा भक्ष्य है जो सर्वत्र मिल सकता है। न तुझे वस्त्र की ही कमी है, न भोजन का ही अभाव है, और, यह तेरी सचहारिणी प्यारी परेई तेरे साथ में है ही। अब दाम्पत्य जीवन में और क्या सुख चाहिए?

और, कपोत व्रत तो अनुपम है ही! वाह!
है इत लाल कपोत ब्रत, कठिन प्रेम की चाल।
मुखते आह न माखहीं, निज सुख करहिं हलाल।। - हरिश्चंद्र

तब क्यों न इस पक्षी को हम एक आदर्श प्रेमी के रूप में देखें?

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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