प्रेम योग -वियोगी हरि
कुछ आदर्श प्रेमीऔर वह चकोरी! क्या कहना, उसकी भी प्रीति अनुकरणीय है। प्रेम रस का पीना चकोरी ने ही जाना। उसकी तल्लीनता, तन्मयता देखते ही बनती है। तुलसी साहब की एक साखी है- ‘तुलसी’ ऐसी प्रीति कर, जैसे चंद चकोर। सारी रात प्यारे चांद की ओर एकटक देखते रहना क्या कोई साधारण साधना है। सच पूछो तो यह योग की त्राटक मुद्रा है। बड़े बड़े योगी भी दृष्टि साधना में उसकी बराबरी न कर सकेंगे। कितनी अधीरता और व्याकुलता है उसकी लगन में! उसका दिन न जाने कैसे कटता होगा। सारा दिन साँस गिनते गिनते जाता होगा। प्रिय दर्शन की आशा उसे अत्यंत अधीर बना देती है। दिन में बिछोह की व्याकुलता और रात में दीदार की बेहोशी। उसे क्या मालूम कि रात कैसे निकल गयी। क्या ही गहरी तल्लीनता है! ‘नेह-निदान’ में सुकवि नवीन लिखते हैं- साँसे गनि काटै दिन आस पै उदासी बिनु, |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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