प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 199

प्रेम योग -वियोगी हरि

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कुछ आदर्श प्रेमी

और वह चकोरी! क्या कहना, उसकी भी प्रीति अनुकरणीय है। प्रेम रस का पीना चकोरी ने ही जाना। उसकी तल्लीनता, तन्मयता देखते ही बनती है। तुलसी साहब की एक साखी है-

‘तुलसी’ ऐसी प्रीति कर, जैसे चंद चकोर।
चोंच झुकी गरदन लगी, चितवत वाही ओर।।

सारी रात प्यारे चांद की ओर एकटक देखते रहना क्या कोई साधारण साधना है। सच पूछो तो यह योग की त्राटक मुद्रा है।

बड़े बड़े योगी भी दृष्टि साधना में उसकी बराबरी न कर सकेंगे। कितनी अधीरता और व्याकुलता है उसकी लगन में! उसका दिन न जाने कैसे कटता होगा। सारा दिन साँस गिनते गिनते जाता होगा। प्रिय दर्शन की आशा उसे अत्यंत अधीर बना देती है। दिन में बिछोह की व्याकुलता और रात में दीदार की बेहोशी। उसे क्या मालूम कि रात कैसे निकल गयी। क्या ही गहरी तल्लीनता है! ‘नेह-निदान’ में सुकवि नवीन लिखते हैं-

साँसे गनि काटै दिन आस पै उदासी बिनु,
रैन के प्रकास लाबै ढोरी मीत ओरी की;
छाड़ि लोक लाजै और बिसारि सब काजै, गाजै
चाहै चुपचापन चितौन चख चोरी की।
नेह के नगारे दैकैं चुगत अँगारे, देखौ,
प्यारे के उज्यारे हित बँधी प्रेम डोरी की;
निबह अभंगी जाय नेक न दुअंगी कहूँ,
ऐसी इकअंगी चाह चंदसों चकोरी की।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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