प्रेम योग -वियोगी हरि
मोह और प्रेममीर साहब ने एक शेर में वहाँ की कुछ बातें बयान की हैं, जहाँ वे स्वरचित प्रेम संसार का मधुर स्वप्न देख रहे हैं। कहते हैं- एक सिसकता है, एक मरता है; इसी तरह आपको अपने शहरे इश्क के भी आस पास कब्र ही कब्र देख पड़ती है- सुना जाता है शहरे इश्क के गिर्द, जहाँ ‘अब जो हैं खाक इन्तिहा है यह’ की बात है, वहाँ और क्या देखेंगे; मजारें ही देख पड़ेंगी। जनाब मीरसाहब; खता माफ़ हो, जिसे आप इश्क की दुनिया कहते हैं औ जहाँ सिसकना, मरना या हर तरफ से जुल्म का होना बयान कर रहे हैं, वहाँ प्रेम संसार नहीं है, मोह संसार है। प्रेम के नगर में कब्रें कहाँ देखने को मिलेंगी। जिसका हृदय प्रेम में बिभोर हो गया, वह कभी मरने या ह तरफ से जुल्म का होना बयान कर रहे हैं, वहाँ प्रेम संसार नहीं है, मोह संसार है। प्रेम के नगर में कब्रें कहाँ देखने को मिलेंगी। जिसका हृदय में बिभोर हो गया, वह कभी मरने वाला नहीं। प्रेम में मरण कैसा? प्रेम तो अनन्त जीवन का नाम है- अर्थात् प्रेम और जीवन एक ही अर्थ के द्योतक शब्द हैं। प्रेम नगर का क्या पूछते हो। धन्य वह देश! हम वासी वा देश के, जहँ बारह मास बिलास। परम प्रकाश रूप है वह देश। वहाँ जीवन ही जीवन है- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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