प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 20

प्रेम योग -वियोगी हरि

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मोह और प्रेम

मीर साहब ने एक शेर में वहाँ की कुछ बातें बयान की हैं, जहाँ वे स्वरचित प्रेम संसार का मधुर स्वप्न देख रहे हैं। कहते हैं-

एक सिसकता है, एक मरता है;
हर तरफ़ जुल्म हो रहा है यहाँ।

इसी तरह आपको अपने शहरे इश्क के भी आस पास कब्र ही कब्र देख पड़ती है-

सुना जाता है शहरे इश्क के गिर्द,
मज़ारे ही मजारें हो गयी हैं।

जहाँ ‘अब जो हैं खाक इन्तिहा है यह’ की बात है, वहाँ और क्या देखेंगे; मजारें ही देख पड़ेंगी। जनाब मीरसाहब; खता माफ़ हो, जिसे आप इश्क की दुनिया कहते हैं औ जहाँ सिसकना, मरना या हर तरफ से जुल्म का होना बयान कर रहे हैं, वहाँ प्रेम संसार नहीं है, मोह संसार है। प्रेम के नगर में कब्रें कहाँ देखने को मिलेंगी। जिसका हृदय प्रेम में बिभोर हो गया, वह कभी मरने या ह तरफ से जुल्म का होना बयान कर रहे हैं, वहाँ प्रेम संसार नहीं है, मोह संसार है। प्रेम के नगर में कब्रें कहाँ देखने को मिलेंगी। जिसका हृदय में बिभोर हो गया, वह कभी मरने वाला नहीं।

जाना जेहिक प्रेममहँ हीया। मरै न कबहूं सो मरजीया।।

प्रेम में मरण कैसा? प्रेम तो अनन्त जीवन का नाम है-

Love and life are words with a similar meaning

अर्थात् प्रेम और जीवन एक ही अर्थ के द्योतक शब्द हैं। प्रेम नगर का क्या पूछते हो। धन्य वह देश!

हम वासी वा देश के, जहँ बारह मास बिलास।
प्रेम झिरै, बिगसै कमल तेज पुंज परकास।।

परम प्रकाश रूप है वह देश। वहाँ जीवन ही जीवन है-

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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