प्रेम योग -वियोगी हरि
मोह और प्रेमभला, देखो तो भाई, प्रेमी कभी ऐसी शिकायत करेगा- हमको उनसे वफ़ाकी है उम्मेद, अरे, क्यों प्रेम मणि के मोल पर मोह के काँच को बेच रहे हो? प्रेमियों के हृदय में यह क्षुद्र्र भावना नहीं हुआ करती कि हम उनसे प्रेम चाहते हैं, जो नहीं जानते कि प्रेम क्या है? अथवा, सच्चे प्रेमी की यह शिकायत नहीं हुआ करती कि- गिला मैं जिससे करूँ तेरी बेवफ़ाईका, प्रेमी की भव्य भावना तो भाई, यह है- मेरी प्रीति होय नन्द नन्दन सों आठों याम, कहाँ तो यह और कहाँ वह कि- ‘जो नहीं जानते वफा क्या है! कौड़ी मोहर का फर्क है या नहीं? फिर क्यों न अपने प्रेम पात्र से वफा की उम्मेद रखने वाले नकली प्रेमी बरबादी की आग में जलकर खाक हो जायँ।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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