प्रेम योग -वियोगी हरि
कुछ आदर्श प्रेमीरहीम ने कहा है- मीन काटि जल धोइये, खाये अधिक पियास। एक और सज्जन इसका समर्थन कर रहे हैं- प्रेमी प्रीति न छाड़हीं, होत न प्रनते हीन। यही कारण है कि सूरदासजी ने विरहिणी व्रजांगनाओं के अश्रुपूर्ण नेत्रों की अन्य सब उपमाओं को तुच्छ ठहराकर, एक मीन की ही उपमा सार्थक मानी है। कहते हैं-उपमा एक न नैन गहो। कबिजन कहत कहत चलि आये, सुधि करि काहु न कही।। अब उस जरा से पतंगे को लीजिए। वह भी एक आदर्श प्रेमी है। यदि मीन का बिछोह बेजोड़ है, तो पतंगे का मिलन अद्वितीय है। सुकवि रघुनाथ ने कहा है- जब कहूँ प्रीति कीजै, पहिले ते सीखि लीजै, |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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