प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 197

प्रेम योग -वियोगी हरि

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कुछ आदर्श प्रेमी

वास्तव में, पतंग का प्रिय मिलन अद्वितीय है। लौ लगाकर लौ से लपट जाना एक पतंग ही जानता है। उसका प्रेमालिंगन अनुपम है। प्रेमाग्नि में अपने अस्तित्व को नष्ट कर देना सिवा उसके और कौन जानता है? सुकवि जिगर ने क्या अच्छा कहा है-

खाके परवानः से आती है सदाएँ पैहम,
जिंदगी है गमे दिलवर में फना हो जाना।

पतंगे की खा से बराबर यह आवाज उठ रही है कि गें दिलवर में फना हो जाने का ही नाम जिंदगी है, प्यारे के वियोग दुख में अपने अस्तित्व को नष्ट कर देना ही जीवन है। कैसी ऊँची और पवित्र भावना है। दिल चाहता है कि उस प्रेम के फकीर की यह सदा हम भी गली गली लगाते फिरें-

जिंदगी है ग़मे दिलवर में फ़ना हो जाना।

जिंदगी की उलझन इस तरह प्रेम की लौ में फ़ना हो जाने से ही सुलझेगी। क्यों न हमलोग पतंगे के जीवन दान से प्रेम का यह पवित्र पाठ पढ़ लें। चातक और मीन के प्रेम की भाँति पतंगे का भी प्रेम एकांगी है। अपने प्रियतम की लापरवाही और निठुराई को वह भी कभी ध्यान में नहीं लाता। उसे तो लपकर उस लौ से लपट जाने से मतलब है। उसे यह जानने का अवकाश कहाँ कि दीपक भी उसे चाहता है या नहीं। कविवर नवीन की इस पर क्या बढ़िया सूक्ति है-

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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