प्रेम योग -वियोगी हरि
कुछ आदर्श प्रेमीवास्तव में, पतंग का प्रिय मिलन अद्वितीय है। लौ लगाकर लौ से लपट जाना एक पतंग ही जानता है। उसका प्रेमालिंगन अनुपम है। प्रेमाग्नि में अपने अस्तित्व को नष्ट कर देना सिवा उसके और कौन जानता है? सुकवि जिगर ने क्या अच्छा कहा है- खाके परवानः से आती है सदाएँ पैहम, पतंगे की खा से बराबर यह आवाज उठ रही है कि गें दिलवर में फना हो जाने का ही नाम जिंदगी है, प्यारे के वियोग दुख में अपने अस्तित्व को नष्ट कर देना ही जीवन है। कैसी ऊँची और पवित्र भावना है। दिल चाहता है कि उस प्रेम के फकीर की यह सदा हम भी गली गली लगाते फिरें- जिंदगी की उलझन इस तरह प्रेम की लौ में फ़ना हो जाने से ही सुलझेगी। क्यों न हमलोग पतंगे के जीवन दान से प्रेम का यह पवित्र पाठ पढ़ लें। चातक और मीन के प्रेम की भाँति पतंगे का भी प्रेम एकांगी है। अपने प्रियतम की लापरवाही और निठुराई को वह भी कभी ध्यान में नहीं लाता। उसे तो लपकर उस लौ से लपट जाने से मतलब है। उसे यह जानने का अवकाश कहाँ कि दीपक भी उसे चाहता है या नहीं। कविवर नवीन की इस पर क्या बढ़िया सूक्ति है- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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