प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 192

प्रेम योग -वियोगी हरि

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कुछ आदर्श प्रेमी

चित्र बिचित्र पवित्र प्रेम प्रनकर मनभावन।
सुनत परमरस ऐन बैन पपिहा के पावन।।
तृन सम हू नहि गिनत सकल निज तन मन धन है।
पूरन प्रेमी परमासय पपिहाकौ प्रन है।।
प्रेम प्रथा अनुकरन जोग थिर चित चातक की।
जिहि सुनि छाती परै न तन प्रवसन पातक की।।

अब मेघ महाराज की भलमनसाहत देखिये। आपकी दृष्टि में चातक के प्रेम का कुछ भी मूल्य नहीं है। वह बेचारा ‘पीउ, पीउ’ पुकारता मरा जाता है, आप घमण्ड में घुमड़ घुमड़कर उसकी ओर हेर तेतक नहीं! हाँ, गर्ज तर्जकर डाट डपट कर बेशक बता देते हैं। मौज में आकर कभी कभी उस गरीब पर पत्थर भी बरसा देते हैं, बिजली भी गिरा देते हैं। प्रेम की कैसी अच्छी कद्र करते हैं ये श्रीमान् मेघ महोदय! पर धन्य वह पपीहा! उसकी प्रीति तो और भी अधिक बढ़ जाती है! एकांगी प्रेम की परीक्षा में कितना ऊँचा उतरता है वह दीन पक्षी!

पबि, पाहन, दामिनि, गरज, झरि, झकोर खरि खीझि।
रोस न प्रीतम दोस लखि ‘तुलसी’ रागहि रीझि।।

वारिद वर! बताओ तो भला, पपीहे ने तुम्हारा ऐसा क्या बिगाड़ा, जो उस पर इतने रुष्ट हो रहे हो? उस पर क्या इसीलिए जुल्म कर रहे हो कि तुम पर उसका प्रेम है? प्रेम का क्या उसे यही पुरस्कार दिया जा रहा है? खैर, तुम्हें तो हम क्या कहें, पर उस प्रेमी पपीहे के, जी चाहता है, पैर चूम लें। हाँ, धन्य तो उस चातक को ही है-

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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