प्रेम योग -वियोगी हरि
कुछ आदर्श प्रेमीचित्र बिचित्र पवित्र प्रेम प्रनकर मनभावन। अब मेघ महाराज की भलमनसाहत देखिये। आपकी दृष्टि में चातक के प्रेम का कुछ भी मूल्य नहीं है। वह बेचारा ‘पीउ, पीउ’ पुकारता मरा जाता है, आप घमण्ड में घुमड़ घुमड़कर उसकी ओर हेर तेतक नहीं! हाँ, गर्ज तर्जकर डाट डपट कर बेशक बता देते हैं। मौज में आकर कभी कभी उस गरीब पर पत्थर भी बरसा देते हैं, बिजली भी गिरा देते हैं। प्रेम की कैसी अच्छी कद्र करते हैं ये श्रीमान् मेघ महोदय! पर धन्य वह पपीहा! उसकी प्रीति तो और भी अधिक बढ़ जाती है! एकांगी प्रेम की परीक्षा में कितना ऊँचा उतरता है वह दीन पक्षी! पबि, पाहन, दामिनि, गरज, झरि, झकोर खरि खीझि। वारिद वर! बताओ तो भला, पपीहे ने तुम्हारा ऐसा क्या बिगाड़ा, जो उस पर इतने रुष्ट हो रहे हो? उस पर क्या इसीलिए जुल्म कर रहे हो कि तुम पर उसका प्रेम है? प्रेम का क्या उसे यही पुरस्कार दिया जा रहा है? खैर, तुम्हें तो हम क्या कहें, पर उस प्रेमी पपीहे के, जी चाहता है, पैर चूम लें। हाँ, धन्य तो उस चातक को ही है- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज