प्रेम योग -वियोगी हरि
कुछ आदर्श प्रेमीजग को, धन! देत हौ, गजके जीवन दान। बलिहारी! अरसिकों को तो भरपेट पानी देते हो, और इस अनन्य रसिक को एक बूँद भी नहीं देते, उलटे पत्थर मारते हो? इसी को सरसता और रसिकता कहते हैं! तुम्हारे आगे प्रेम गाथा का गाना व्यर्थ है! मीन क्या आदर्श प्रेमी नहीं है? क्यों नहीं, उसकी प्रीति तो अतुलनीय है। अकथनीय है। प्रीति प्रीति तो सभी चिल्लाते फिरते हैं, प्रीति करते भी अनेक प्रेमी हैं, पर प्रीति का मर्म मीनने ही समझा है- सुलभ प्रीति प्रीतम सबै, कहत करत सब कोइ। यों तो कहने को जल के अनेक जीव हैं, मगर भी पानी में रहता है, साँप भी पानी में रहता है, मेढक का भी वहीं घर है, कछुए का भी वहीं रहना होता है। और भी अनेक जीवों का जल ही गृह है और जल ही जीवन है पर मीन का उससे जो प्रेम है, वह दूसरे जलचरों में कहाँ? और जीवों का तो जल केवल घर है, जीवन है, पर मीन के लिए तो वह जीवन का भी जीवन है, प्राणों का भी प्राण है- और न जाने क्या है- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज