प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेमी का मनऐसो जो हौं जानतो, कि जै है तू बिषैके संग, कहते हैं- मैं यह जानता होता कि तू मुझे त्यागकर विषयों के हाथ चला जायेगा, तो रे मेरे मन! मैं तो तभी तेरे हाथ पैर तोड़ कर तुझे लूला लंगड़ा कर डालता। तेरे कारण आज तक न जाने कितने नर पतियों की नाहीं सुननी पड़ी है। सोतो न सुननी पड़ती, उनके मुख की ओर तो न ताकना पड़ता! ऐसा जानता तो तेरी सारी चंचलता भुला देता, तुझे अचल कर देता। चेतावनी के चाबुक मार मारकर तुझे विषय पथ से लौटा ही लेता। अरे, बड़ी भूल हुई। तुझे तो मैं डंके की चोट से तरे अचल कर देता। चेतावनी के चाबुक मार मारकर तुझे विषय पथ से लौटा ही लेता। अरे, बड़ी भूल हुई। तुझे तो मैं डंके की चोट से तेरे गले में प्रेम का भारी पत्थर बाँधकर श्रीराधिका रमण कृष्ण के विरद वारिधि में डुबा देता तो अच्छा होता। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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