प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 17

प्रेम योग -वियोगी हरि

Prev.png

मोह और प्रेम

मौलाना रूम ने बी किसी की सूरत और रंग पर मरने को प्रेम का नाम नहीं दिया है। बकौले मौलाना, शकल सूरत के बदलते ही कुछ ही दिनों में वह प्रेम नंगा साबित हो जायेगा। जो कभी आग था वह खाक हो जायेगा। कृष्ण वियोगिनी राधा कहती हैं-

प्यारे आवें, मृदु चयन कहें, प्यार से अंक लेवें;
ठंडे होवें नयन, दुख हो दूर, मैं मोद पाऊँ।
ये भी हैं भाव हियतल के, और ये भाव भी हैं-
प्यारे जीवें, जगत हित करें, गेह चाहे न आवें।- हरिऔध

पहले भावों में मोह का एक हल्का सा उन्माद है, पर दूसरे भावों में तो परम प्रेम का उज्ज्वलतम आदर्श आलोकित हो रहा है।

कहीं भी रहें, प्यारे कृष्ण चिरंजीव रहें। घर चाहें न आयें, जगत् का उपकार करते रहें। प्रेम की कैसी पवित्र भावना है!

प्यारे जीवें, जगत् हित करें, गेह चाहे न आवें।
सच्चा प्रेमी तो अपने प्रेम पात्र के पत्र में यह लिखेगा कि-
तुम यहाँ सुध लो कि न लो कभी,
उचित उत्तर दो कि न दो कभी।
पर यही कहते हम हैं अहो!
तुम सदैव सहर्ष सुखी रहो।। - मैथिलीशरण गुप्त

हमारा प्रेम पात्र भी हम पर प्रेम करे, हमें छोड़ वह और किसी पर प्रेम न करे आदि क्षुद्र भावनाएँ कल्याणकारी प्रेम की नहीं, नाशकारी मोह की है। भला यह भी कोई प्रेम है!

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः