प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 169

प्रेम योग -वियोगी हरि

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प्रेमाश्रु

अजी, खोल देने दो भेद। यहाँ डर ही किस बात का है। जब रोना ही है, तब खुब दिल खोलकर रो लें। इन्हीं आँसुओं की बदौलत तो आँखों में यह प्रकाश बना हुआ है। मुबारक हो प्रेमियों के चुलबुले आँसुओं का बचपन। परमात्मा न करे कि कभी ये प्यारे मनचले आँसू सूख जायँ। इनके सूखते ही आँखों के दिये बुझ जायँगे, अंधेरा छा जायेगा। हमारे मीर साहब कहते हैं-

सूखते ही आँसुओं के नूर आँखों का गया,
बुझ ही जाते हैं दिये जिस वक्त सब रोगन जला।

दिन रात इसी तरह बहते रहें। जब तक प्यारे न आवें, कम से कम तब तक तो इनका बहना बंद न हो। न जाने कबसे यह लालसा है कि वह दिन कब आयेगा, जब ये प्रेम में पागल आँसू प्रियतम के चरणों को पखारेंगे-

यों रस भीजे रहै ‘घन आऩंद’ रीझैं सुजान! सुरूप तिहारैं।
चायनि बावरे नैन कबै अँसुवानिसों रावरे पाय पखारैं।।

जिस दिन ये उन प्यारे पैरों को पखारेंगे, उसी दिन इन्हें हम बड़भागी कहेंगे। क्योंकि उस दिन अपने पटके अंचल से प्रियतम इन्हें पोंछ देंगे। धन्य!

आँसुनकों अपने अँचरान सों लालन पोंछि करैं बड़भागी।। - हरिश्चंद्र

पर शायद ही इस जीवन में ये कभी बड़भागी हो पायँ। उनके यहाँ पधारने की कोई आशा नहीं। तब इन अभागे आँसुओं की पहुँच उन चरणों तक कैसे हो सकेगी? एक उपाय है। यदि परोपकारी मेघ किसी तरह इन आँसुओं को लेकरप्यारे के आँगन पर टुक बरसा दें, तो इनकी साध अवश्य पूरी हो जाय। चाहें तो वे कर सकते हैं, क्योंकि दूसरों के ही लिये उन्होंने शरीर धारण किया है-

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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