प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेमाश्रुअच्छा भाई, रो लो। अगर तुम्हारे दिल का गुबार इस तरह कुछ धुल जाय, तो जाओ, उस गली में जरा रो आओ। पर वहाँ जाकर इतना ज्यादा क्यों रोया करते हो। क्या दो जार बूँद आसूँ गिराने से काम न चल जायेगा! नहीं, हरगिज नह- आह! किस ढब से रोइये कम कम, आँसू भी कैसे चुलबुले होते हैं! आँखों में छलकते ही दिले आशिक का सारा भेद खोलकर रख देते हैं। कैसा लड़कपन है इन भोले भाले आँसुओं में। सुकवि दर्द का एक शेर है- ऐ आँसुओं, न आवे कुछ दिल की बात लब पर। कहते हैं- तुम अभी बच्चे हो, कहीं दिली प्रीति का भेद न खोल देना। पर वे तुम्हारी नसीहत क्यों मानने चले? जिसे घर से निकाल दोगे, वह भला तुम्हारा कोई भेद छिपाये रक्खेगा! रहीम ने कहा है- ‘रहिमन’ अँसुआ नयन ढरि, जिय दुख प्रगट करेइ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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