प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 168

प्रेम योग -वियोगी हरि

Prev.png

प्रेमाश्रु

अच्छा भाई, रो लो। अगर तुम्हारे दिल का गुबार इस तरह कुछ धुल जाय, तो जाओ, उस गली में जरा रो आओ। पर वहाँ जाकर इतना ज्यादा क्यों रोया करते हो। क्या दो जार बूँद आसूँ गिराने से काम न चल जायेगा! नहीं, हरगिज नह-

आह! किस ढब से रोइये कम कम,
शौक हद से जियादा है हमें। - मीर
अरे, दो बूँद आँसुओं से कहीं दिल की आग बुझी है?
मुत्तासिल रोते ही रहें तो बुझे आतिश दिल की,
एक दो आँसू तो और आग लगा जाते हैं! - मीर

आँसू भी कैसे चुलबुले होते हैं! आँखों में छलकते ही दिले आशिक का सारा भेद खोलकर रख देते हैं। कैसा लड़कपन है इन भोले भाले आँसुओं में। सुकवि दर्द का एक शेर है-

ऐ आँसुओं, न आवे कुछ दिल की बात लब पर।
लड़के हो तुम कहीं मत अफ़साये राज़ करना।।

कहते हैं- तुम अभी बच्चे हो, कहीं दिली प्रीति का भेद न खोल देना। पर वे तुम्हारी नसीहत क्यों मानने चले? जिसे घर से निकाल दोगे, वह भला तुम्हारा कोई भेद छिपाये रक्खेगा! रहीम ने कहा है-

‘रहिमन’ अँसुआ नयन ढरि, जिय दुख प्रगट करेइ।
जाहि निकारौ गेह तें कस न भेद कहि देइ।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः