प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेमाश्रुप्रेमियों को या उनके आँसुओं को तुम करुणा तरंगिणी मे कलोल करते हुए क्यों नहीं देखते? कवियों की बात दूसरी है। उन्हें अपनी प्रतिभा के बल से कला का प्रदर्शन करना है। आँसुओं को वे लोग मोती के दानें कहें या ओस की बूँदें, हमें कोई विपत्ति नहीं। किसी तरह हो, उन्हें दिखाना है अपना कला कौशल, उन्हें प्रफुल्लित करना है कोविदों का मनोमुकुल, सो खुशी से किये जायँ। हम क्या कहें, हम तो प्रेमियों के आँसुओं को आँसू ही कहेंगे। हाँ, आँसू को आँसू न कहकर और क्या कहें। वकौले हरिऔध किसी प्रेमी के जिगर पर एक फफोला सा पड़ गया था। वही आज अचानक फूटकर बह रहा है। हा! उसका इतना बड़ा अरमान आज कुछ बूँदें बनकर निकल पड़ा है- था जिगर पर जो फफोला सा पड़ा, अब बताओ, जिगरी फफोले के मवाद को हम किस अनोखी सूझ से मोती का दाना कहें? खैर, अच्छा हुआ, जो फफोला फूट गया, दर्द कुछ कम हो गया। रो लेने से दिल का गुबार जरूर कुछ न कुछ धुल जाता है। इससे- चल दिल उसकी गली में रो आवें, |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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