प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेम और विरहहाँ, भाई! सच तो कहते हैं- ‘दर्द’ अपने हाल से तुझ आगाह क्या करे, अब तो आह से भी वह दिल बहलने का नहीं। यही हाल आसूँ का भी है। आँखों के झरने कभी के बंद हो गये। अब तो वहाँ सिर्फ एक जलन है या वह ना उम्मेदी जिसके आगे वह जोशे जुनू में मस्त विरहा घुटने टेके हुए यह कह रहा है- सँभलने दे मुझे, ऐ ना उमेदी, क्या कयामत है,
मुनहसर मरने पै हो जिसकी उमेद, पर यह ना उमेदी सदा ना उमेदी ही न रहेगी। इस निराशा से ही किसी दिन आशा का उदय होगा। मान लो कि विरह की निराशा में एक दिन मौत भी आ जाय, तो भी कुछ बिगड़ने का नहीं; क्योंकि वह मौत एक असाधारण मौत होगी। वह मौत, मौत की मौत होगी। अजी, कह देना उस घड़ी- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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