प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेम और विरहसच्चे प्रेमियों का वियोग विलक्षण होता है। वियोग होते हुए भी उनमें वियोग नहीं होता। दोनों ही प्रेम की डोरी में बँधे रहते हैं। कितने ही दूर वे प्रेमी क्यों न चले जायँ, उनके हृदय वैसे ही मिले रहेंगे। प्रेम में जरा सी भी कमी न आयगी। बड़ी अद्भुत है प्रेम की डोरी। प्रेमियों का वियोग भी रहस्यमय है- अद्भुत डोरी प्रेम की जामें बाँधे दोय। एक कहीं है तो दूसरा कहीं है, पर प्रेम के एक ही बाण से दोनों के दिल एक साथ बिंधे हुए हैं। क्या कहें हम इस तीरे इश्क को! हम तड़पते हैं यहाँ पर वाँ तड़पता यार है, अब, इसे वियोग कहें या संयोग? भिन्न होते हुए भी दोनों अभिन्न हैं! सुना जाता है कि विरही को दयालु दाता ने दो अजीब खिलौन बख्श दिये हैं- आँसू और आह! खूब बहला सकता है। इन खिलौनों से वह पगला अपना मचला हुआ दिल। अब और क्या चाहता है! चाहता क्या है, कुछ नहीं। पर उसके पास आज वे मन बहलाव की चीजें हैं कहाँ? न आँखों में आँसू हैं, न दिल में आह। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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