प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 163

प्रेम योग -वियोगी हरि

Prev.png

प्रेम और विरह

अबहुँ बेलि फिर पलुहै, जो पिय सींचै आइ। - जायसी

सच्चे प्रेमियों का वियोग विलक्षण होता है। वियोग होते हुए भी उनमें वियोग नहीं होता। दोनों ही प्रेम की डोरी में बँधे रहते हैं। कितने ही दूर वे प्रेमी क्यों न चले जायँ, उनके हृदय वैसे ही मिले रहेंगे। प्रेम में जरा सी भी कमी न आयगी। बड़ी अद्भुत है प्रेम की डोरी। प्रेमियों का वियोग भी रहस्यमय है-

अद्भुत डोरी प्रेम की जामें बाँधे दोय।
ज्यों ज्यों दूर सिधारिये, त्यों त्यों लाँबी होय।।
त्यों त्यों लाँबी होय, अधिकतर राखै कसिकैं।
नेह न्यून ह्वै सकत नेकु नहिं दुरहु बसिकैं।।
बिधिना देह बिछोह, कहूँ तासों कर जोरी।
रखियो छेम समेत, प्रेम की अद्भुत डोरी।। - देवी प्रसाद ‘पूर्ण’

एक कहीं है तो दूसरा कहीं है, पर प्रेम के एक ही बाण से दोनों के दिल एक साथ बिंधे हुए हैं। क्या कहें हम इस तीरे इश्क को!

हम तड़पते हैं यहाँ पर वाँ तड़पता यार है,
एक तीरे इश्क है, और दो दिलों के पार है।

अब, इसे वियोग कहें या संयोग? भिन्न होते हुए भी दोनों अभिन्न हैं! सुना जाता है कि विरही को दयालु दाता ने दो अजीब खिलौन बख्श दिये हैं- आँसू और आह! खूब बहला सकता है। इन खिलौनों से वह पगला अपना मचला हुआ दिल। अब और क्या चाहता है! चाहता क्या है, कुछ नहीं। पर उसके पास आज वे मन बहलाव की चीजें हैं कहाँ? न आँखों में आँसू हैं, न दिल में आह।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः