प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 157

प्रेम योग -वियोगी हरि

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प्रेम और विरह

और नहीं तो, पूज्य पवन देव, कृपाकर मेरा इतना काम तो कर ही दो! जहाँ कहीं भी मेरे प्यारे हों, उनके पैरों की थोड़ी सी धूल मुझे ला दो। उसे मैं इन जलती हुई आँखों में आँजूगी। हाँ, विरह व्यथा में वह प्यारी धूल ही सञ्जीवनी का काम देगी-

बिरह बिथा की मूरि, आँखिन में राखौं पूरि,
धूरि तिन पायन की, हा हा, नेकु आनि दै।। - आनन्दघन

वियोग श्रृंगार के मुख्य कवि जायसी ने भौंरे और कौए के द्वारा एक विरहिणी का संदेसा उसके प्रियतम के पास बड़ी ही विदग्धता से भेजवाया है। प्रिय वियोगिनी केवल इतना ही कहलाना चाहती है-

पिउ सों कहेहु संदेसड़ा, हे भौंरा, हे काग।
सो धन बिरहै जरि मुई, तेहिक धुवाँ हम्ह लाग।।

इस ‘संदेसे’ में सर्वव्यापिनी सहानुभूति की कैसी सुंदर व्यंजना हुई है!

हाय री प्रिय स्मृति! तब क्या था और अब क्या है। जो कृष्ण कभी आँखों के आगे से न टलते थे, सदा पलकों पर रहते थे, हा! आज उनकी कहानी सुननी पड़ रही है! क्या से क्या हो गया है आज।

जा थल कीनें बिहार अनेकन, ता थल काँकरी बैठि चुन्यो करैं।
जा रसना सों करी बहुबातन, ता रसना सों चरित्र गुन्यो करैं।।
‘आलम’ जौन से कुंजन में करी केलि तहाँ अब सीस धुन्यो करैं।
नैनन में जो सदा रहते तिनकी अब कान कहानी सुन्यो करैं।। - आलम

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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