प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 158

प्रेम योग -वियोगी हरि

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प्रेम और विरह

हमें और क्या चाहिए। उनसे हम कुछ न मांगेंगी। न जाने वे क्या जानकर संकोच कर रहे हैं। क्यों नहीं आते प्यारे श्याम! क्या कभी आयेंगे हमारे हृदय रमण कृष्ण?

सखि, क्या कहा? तनिक फिर तो कह, फिर मृदु गिरा सुनूँ तेरी,
सहसा बधिर हो गई हूँ मैं, मिटा मनोज्वाला मेरी,
पावेगा यह दग्ध हृदय क्या फिर वह रत्न महा अभिराम?
हा हा? पैरों पड़ती हूँ मैं, सच कह, फिर आवेंगे श्याम? - ‘मधुप’

क्या वह इतना भी जानता होगा कि हम उसकी पगली वियोगिनी हैं? सुनो-

न कामुका हैं हम राज वेश की,
न नाम प्यारा ‘यदुनाथ’ है हमें।
अनन्यता से हम हैं व्रजेश की
विरागिनी, पागलिनी, वियोगिनी।। - हरिऔध

पथिक! अब वीर वर वियोग की अजेय सेना से आवृत मुझ निस्सहाय का यह अंतिम संदेश वहाँ तक ले जाओ। कहना कि उसे अचानक ही उस सेना ने घेर लिया है। उस शूर शिरोमणि के विकट कटक का सामना करना आसान नहीं। बचने का अब उपाय भी कोई नहीं है। उसे अब सब तरह से हारा हुआ ही समझो। फिर भी प्यारे, तुम्हारे द्वार पर, समय रहते, उसकी सुनवायी न हुई, तो वह प्रेम का प्रण पालने वाला विरही बाहर निकलकर एक मोर्चा तो लेगा ही और प्रेम के रणांगण पर जूझकर धूल में मिल जायेगा। फिर, प्यारे! तुम्हारे उस विस्मृत की यह कहानी दुनिया में चल जायेगी तो क्या अब यही कराना चाहते हो?

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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