प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेम और विरहभाड़की जलती बालू में अनाज का दाना डालकर कितनी ही बार भूनो, वह बराबर उछलता ही रहेगा, उस प्यारी बालू को छोड़कर बाहर न जायेगा। विरह दाह में वियुक्त प्रिय का ध्यान चंदन और कपूर से भी अधिक शीतल लगता है। इसी से उस दाह में दग्द होने को विरही प्रेमी का चित्त सदा व्याकुल और अधीर रहा करता है- विरही के रुदन को कोई क्या जाने। मौलाना रूम की रोती हुई बाँसुरी कहती है- ‘जिसका हृदय वियोग के मारे टुकड़े टुकड़े न हो गया हो, वह मेरा अभिप्राय कैसे समझ सकता है? यदि मेरी दरदभरी दास्ताँ सुननी है तो पहले अपने दिल को किसी प्यारे के बियोग में टुकड़े टुकड़े कर दो, फिर मेरे पास आओ, तब मैं बताऊँगी कि मेरी क्या हालत है। मैंने अच्छे बुरे सभी के पास जाकर अपन रोना रोया, पर किसी ने भी ध्यान न दिया- सुना और सुनकर टाल दिया। जिन्होंने सुना और ध्यान न दिया मैं उनको बहरा जानती हूँ, और जिन्होंने चिल्लाते देखा, पर न जाना कि क्यों चिल्ला रही है। मैंने समझ लिया कि वे अंधे हैं। मेरे रोने के रहस्य को एक वही जान सकता है जो आत्मा की आवाज को सुनता तथा पहचानता है। वास्तव में, मेरा रुदन आत्मा के रुदन से जुदा नहीं है।’ तब विरही के रोने की आनन्दमयी क्यों न कहें! धन्य है वह, जो प्रियतम के वियोग में इस बाँसुरी की तरह दिन रात रोया करता है- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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