प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 148

प्रेम योग -वियोगी हरि

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प्रेम और विरह

लागिउँ जरै, जरै जस मारू। फिरि फिरि भूँजेसि, तजिऊँ न बारू।।

भाड़की जलती बालू में अनाज का दाना डालकर कितनी ही बार भूनो, वह बराबर उछलता ही रहेगा, उस प्यारी बालू को छोड़कर बाहर न जायेगा। विरह दाह में वियुक्त प्रिय का ध्यान चंदन और कपूर से भी अधिक शीतल लगता है। इसी से उस दाह में दग्द होने को विरही प्रेमी का चित्त सदा व्याकुल और अधीर रहा करता है-

जरत पतंग दीप में जैसे, और फिर फिर लपटात। - सूर

विरही के रुदन को कोई क्या जाने। मौलाना रूम की रोती हुई बाँसुरी कहती है- ‘जिसका हृदय वियोग के मारे टुकड़े टुकड़े न हो गया हो, वह मेरा अभिप्राय कैसे समझ सकता है? यदि मेरी दरदभरी दास्ताँ सुननी है तो पहले अपने दिल को किसी प्यारे के बियोग में टुकड़े टुकड़े कर दो, फिर मेरे पास आओ, तब मैं बताऊँगी कि मेरी क्या हालत है। मैंने अच्छे बुरे सभी के पास जाकर अपन रोना रोया, पर किसी ने भी ध्यान न दिया- सुना और सुनकर टाल दिया। जिन्होंने सुना और ध्यान न दिया मैं उनको बहरा जानती हूँ, और जिन्होंने चिल्लाते देखा, पर न जाना कि क्यों चिल्ला रही है। मैंने समझ लिया कि वे अंधे हैं। मेरे रोने के रहस्य को एक वही जान सकता है जो आत्मा की आवाज को सुनता तथा पहचानता है। वास्तव में, मेरा रुदन आत्मा के रुदन से जुदा नहीं है।’ तब विरही के रोने की आनन्दमयी क्यों न कहें! धन्य है वह, जो प्रियतम के वियोग में इस बाँसुरी की तरह दिन रात रोया करता है-

धन सो धन जेहि बिरह बियोगू। प्रीतम लागि तजै सुखभोगू।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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